125 दिन वेंटिलेटर पर रहकर नवजात स्वस्थ होकर पहुंचा घर

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अल्मोड़ा, अल्मोड़ा राजकीय मेडिकल कॉलेज के शिशु एवं बाल रोग विभाग ने शिशु चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विभाग ने 125 दिन वेंटिलेटर पर रहने वाले अत्यधिक कम वजन के एक नवजात शिशु को न केवल स्वस्थ किया, बल्कि 151 दिन तक उपचार के बाद मंगलवार को पूरी तरह स्वस्थ अवस्था में घर भेज दिया। यह उपलब्धि शिशु चिकित्सा के इतिहास में मील का पत्थर मानी जा रही है। जनपद के धौलादेवी विकासखंड के काण्डा नौला दौलिगाड़ निवासी सपना, पत्नी कृष्ण कुमार टम्टा ने 21 फरवरी 2025 को गर्भावस्था के सातवें महीने में समय से पहले जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था। समय पूर्व प्रसव और अत्यधिक कम वजन के चलते एक बच्चा नहीं बच पाया, जबकि दूसरे बच्चे की हालत गंभीर थी। सांस लेने में तकलीफ, संक्रमण और अन्य जटिलताओं के कारण नवजात को मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में भर्ती किया गया। चिकित्सा अधीक्षक एवं बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ अमित कुमार सिंह ने बताया कि नवजात का वजन मात्र 800 ग्राम था और शारीरिक विकास भी अधूरा था। बच्चे के जीवन को बचाने की चुनौती को बाल रोग विभाग की टीम ने पूरे समर्पण के साथ स्वीकार किया। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उपचार के लिए परिजन अन्यत्र नहीं जा सके। इस स्थिति में अस्पताल स्टाफ और स्थानीय दानदाताओं के सहयोग से इलाज की व्यवस्था की गई। उपचार के दौरान बच्चे को 18 बार रक्त चढ़ाया गया। रक्तदान के लिए परिजनों की असमर्थता के बाद ब्लड बैंक ने स्वैच्छिक रक्तदाताओं की मदद ली। बीमार नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) के कंसल्टेंट डॉ बीएल जायसवाल, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ गौरव पांडेय, सीनियर रेजिडेंट डॉ हर्ष गुप्ता और समस्त जूनियर रेजिडेंट्स की टीम ने दिन-रात मेहनत कर बच्चे का उपचार किया। नर्सिंग इंचार्ज एकता सिंह और नीलिमा पीटर के निर्देशन में नर्सिंग स्टाफ ने भी पूरी निष्ठा के साथ देखभाल की। लगातार 125 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद बच्चे को जीवन रक्षक उपकरणों से हटाया जा सका। अब शिशु का वजन 800 ग्राम से बढ़कर 2.5 किलो तक पहुंच गया है। बच्चे की स्थिति स्थिर होने पर माता-पिता के अनुरोध पर मंगलवार को उसे खुशी-खुशी घर भेजा गया। डिस्चार्ज के दौरान मौजूद विभाग की डॉक्टर उज्मां, स्वास्थ्य शिक्षक प्रियंका बहुगुणा, नर्सिंग अधिकारी दीपा, सीमा, उमा, सुनीता, सुष्मिता, मीनाक्षी, भारती और सहयोगी स्टाफ दया, मेघा आदि की आंखें खुशी से नम हो गईं। यह भी उल्लेखनीय है कि शिशु का परिवार एकल होने और वरिष्ठ परिजनों के अभाव में विभागाध्यक्ष डॉ अमित कुमार सिंह ने दवा, दूध और देखभाल की जिम्मेदारी खुद उठाई। प्राचार्य डॉ सीपी भैंसोड़ा ने बाल रोग विभाग की इस उपलब्धि पर पूरी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह चिकित्सा विज्ञान में मानवीय संवेदनाओं की एक मिसाल है।

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