हरिद्वार । हरिद्वार निवासी महिला की नसबंदी के बावूजद बेटी हुई। महिला ने इसे ऑपरेशन में लापरवाही बताते हुए जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की। फैसला महिला के हक में आया और 13 लाख रुपये मुआवजा महिला को बच्ची के पालन-पोषण और शिक्षा के लिए मिलने थे। फैसले के खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील हुई, तो आयोग ने अपने आदेश में कहा कि ऑपरेशन की विफलता में डॉक्टर की लापरवाही साबित नहीं हो पाई, इसलिए मुआवजा नहीं दिया जा सकता। महिला ने 2017 में हरिद्वार के तत्कालीन सीएमओ और मैट्रो हॉस्पिटल एंड हॉर्ट इंस्टीट्यूट सिडकुल, डॉ.तारूश्री के खिलाफ वाद दायर किया था। महिला के मुताबिक मैट्रो अस्पताल में डॉ.तारूश्री ने 7 नवंबर 2015 को उसकी नसंबदी का ऑपरेशन किया था। ऑपरेशन के एक साल 10 महीने बाद उसने बेटी को जन्म दिया। महिला ने प्रसव पर आए खर्च, मानसिक पीड़ा के साथ ही नसबंदी के बावजूद जन्मी बच्ची के पालन पोषण, शिक्षा के साथ ही वाद व्यय के रूप में साढ़े 17 लाख रुपये के मुआवजे की मांग रखी थी। जिला उपभोक्ता आयोग ने 2020 में महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे 13 लाख का मुआवजा देने के आदेश दिए। आदेश के खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की गई। राज्य उपभोक्ता आयोग ने मामले से जुड़े पक्षों के सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के तमाम फैसलों का हवाला देते हुए जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को खारिज कर दिया।
नसबंदी के तरीके सौ फीसदी सुरक्षित नहीं: राज्य उपभोक्ता आयोग की अध्यक्ष कुमकुम रानी ने अपील पर सुनवाई के बाद पाया कि नसबंदी के सौ फीसदी सुरक्षित नहीं होते हैं। ऐसे मामलों में डॉक्टर की लापरवाही को साबित करने के लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। आयोग ने अपने आदेश में कहा कि डॉक्टर की लापरवाही साबित करने के लिए विशेषज्ञ साक्ष्य या रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की। सिर्फ ऑपरेशन की विफलता के आधार पर मुआवजा नहीं दिया जा सकता। इसके लिए डॉक्टर की लापरवाही को साबित करना जरूरी है। आयोग में जमा रकम वापस होगी राज्य उपभोक्ता आयोग ने जिला आयोग के फैसले को गलत बताते हुए रद्द कर दिया। हालांकि जिला उपभोक्ता आयोग हरिद्वार के सीएमओ के खिलाफ दायर शिकायत को पहले ही खारिज कर चुका था। फैसले में आयोग में अपीलकर्ता की ओर से जमा धनराशि को भी लौटाने के आदेश दिए गए हैं।