नरोदा गाम हत्याकांड के 21 साल बाद विशेष अदालत ने सुनाया फैसला, सभी आरोपियों को बताया निर्दोष
नई दिल्ली, एजेंसी। गुजरात के नरोदा पटिया नरसंहार मामले में आज अहमदाबाद की विशेष अदालत फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में सभी आरोपियों को निर्दोष बताया है। 21 साल पहले हुए एक दंगे में कुल 11 लोग मारे गए थे, जिसके बाद पूर्व राज्य मंत्री समेत 82 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
हालांकि, इसमें से 18 लोगों की मौत हो चुकी है। रकळ मामलों के विशेष जज एस के बक्शी की बेंच 20 अप्रैल यानी आज 68 आरोपियों के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें सभी को निर्दोष करार दिया गया। आज का दिन नरोदा गांव मामले के लिए काफी अहम रहा।
दरअसल, 2002 में गोधरा कांड हुआ था, जिसमें 11 कारसेवकों समेत 58 लोगों की मौत हो गई थी। इसके अगले दिन वीएचपी ने बंद बुलाया गया था, सुबह ही लोग अपनी दुकानें बंद कर के भागने लगे, अपने घरों में ताला लगा लिया और सड़क पर जितने लोग मौजूद थे, वो इधर-उधर भागने लगे।
दरअसल, बंद का आह्वान कर रहे लोगों ने पथराव और आगजनी शुरू कर दी। देखते-ही-देखते नरोदा गांव का पूरा हुलिया बदल गया था। इस दौरान नरोदा गांव और नरोदा पटिया दोनों ही क्षेत्र प्रभावित हुए थे, इस दौरान कुल 97 लोगों के मौत की खबर सामने आई थी।
लगभग 10 घंटे तक चले इस नरसंहार के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए थे। इस मामले में रकळ ने जांच शुरू की और पूर्व राज्य मंत्री माया कोडनानी को मुख्य आरोपी बताया। दंगे ने इतना भयानक रूप ले लिया था कि 27 शहरों और कस्बों में कफ्र्यू लगाना पड़ा था, क्योंकि वहां के लगभग तमाम मुस्लिमों के घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया था।
28 फरवरी, 2002: गोधरा कांड के बाद वीएचपी ने बंद का आह्वान किया था। इसी दौरान पूरे क्षेत्र में दंगे फैल गए थे। दंगे में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया था, उनके घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।
2009 में शुरू हुई कार्रवाई: इस मामले में सुनवाई साल 2009 में शुरू की गई थी। इसमें लगभग पूर्व राज्य मंत्री समेत 82 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। लगभग 13 सालों से चल रहे इस मामले में अब तक 187 लोगों से पूछताछ की गई है, जबकि 57 चश्मदीद के बयान दर्ज किए गए थे। इसमें पीड़ित, डॉक्टर, स्थानीय दुकानदार आदि शामिल हैं।
2012 में सुनाई गई थी सजा: साल 2012 में विशेष अदालत ने भाजपा विधायक और पूर्व राज्य मंत्री माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को हत्या और हिंसा का मुख्य आरोपी माना। पूरे मामले को ध्यान में रखते हुए उस दौरान 32 लोगों को दोषी ठहराया गया। इसमें पूर्व राज्य मंत्री कोडनानी को 28 साल की सजा सुनाई गई थी, तो वहीं बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
फरवरी, 2017: इस मामले में माया कोडनानी के बचाव पक्ष में अमित शाह सामने आए थे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस हिंसा के दौरान कोडनानी उनके साथ थी और वे लोग गोधरा कांड में मारे गए लोगों का शव देखने के लिए गए थे।
20 अप्रैल, 2018: माया कोडनानी ने विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया। जिस दौरान हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव के कारण माया कोडनानी को बरी कर दिया और बाबू बजरंगी की सजा को कम कर के 21 साल कर दिया।