बागेश्वर की सरयू नदी में मशीनों से खनन मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद
नैनीताल। हाईकोर्ट ने सरयू नदी बागेश्वर में भारी मशीनों द्वारा खनन की अनुमति दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई हेतु छह सप्ताह बाद की तिथि नियत की है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमुर्ति व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। पूर्व में कोर्ट ने नदी में भारी मशीनों द्वारा खनन करने पर रोक लगा दी थी। साथ ही यह भी कहा था कि प्रभावित लोग कोर्ट में अपना पक्ष रखें। जिसमे से बुधवार को कुछ खनन व्यवसायियों द्वारा प्रार्थना पत्र देकर कहा कि उनको सुना जाय, क्योंकि लकडाउन में खनन कार्य हेतु मजदूर नही मिलने के कारण उनको नुकसान हो रहा है, इसलिए उनको मशीनों से खनन की अनुमति दी जाय। जिस पर कोर्ट ने उनको सुनने के लिए छ: सप्ताह बाद की तिथि नियत की है।
बागेश्वर निवासी प्रमोद कुमार मेहता ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि बागेश्वर नगर क्षेत्र व बागेश्वर तहसील के अंतर्गत उपजिलाधिकारी बागेश्वर द्वारा 9 मार्च 2020 को एक निविदा प्रकाशित की गयी थी जिसके द्वारा स्थानीय नागरिकों/ संस्थाओं को नदी से रेता बजरी उपखनिज के निस्तारण व उठान हेतु खुली नीलामी आमंत्रित की गई थी। खुली नीलामी के आड़ में जिला प्रशासन माफियाओं को लाभ पहुचाने के लिए बड़ी मशीनों जैसे जेसीबी पोकलैंड मशीनों के उपयोग की अनुमति देकर पवित्र नदी के स्वरूप को खत्म करने का प्रयास कर रहा है।
जबकि अभी तक सरयू नदी में बिना मशीनों के ही मैनुअल चुगान होता आया है। सरयू नदी में रेता, बजरी अधिक मात्रा में जमा नही होता है उसका चुगान लेबरों के द्वारा ही किया जाता रहा है। निविदा हेतु 19 मार्च 2020 तक आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि निर्धारित की गई थी तथा खुली नीलामी 20 मार्च 2020 को की जानी थी। प्रशासन द्वारा 20 मार्च 2020 को खुली नीलामी कर दी ।
नीलामी को निरस्त करने हेतु स्थानीय लोगो द्वारा इस संबंध में जिलाधिकारी बागेश्वर को 13 मार्च को संयुक्त प्रत्यावेदन भी दिया जा चुका है।
सरयू नदी में रेता बजरी की मात्र के बिना आकलन के ही नियम विरुद्घ तरीके से नीलामी की जा रही है जो कि उत्तराखंड रिवर ट्रेनिंग नीति 2020 के प्रावधानों के विपरीत है।