नईदिल्ली, भारत में बनने वाले 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान यानी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। 7 भारतीय कंपनियों ने इसके प्रोटोटाइप डिजाइन और विकसित करने के लिए बोली लगाई है। अब इनमें से 2 कंपनियों का चयन किया जाएगा, जो रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर लड़ाकू विमानों पर काम करेगी। सबकुछ ठीक रहा तो 2035 के आसपास भारत को 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान मिल सकता है।
जिन कंपनियों ने बोली लगाई हैं, उनमें लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी), हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड, कल्याणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम्स और अडाणी डिफेंस शामिल हैं। अब ब्रह्मोस एयरोस्पेस के पूर्व प्रमुख ए शिवथानु पिल्लई के नेतृत्व वाली एक समिति इन बोलियों का मूल्यांकन करेगी और रक्षा मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपेगी। फिर 2 कंपनियों को चुना जाएगा, जिन्हें एएमसीए के 5 मॉडल बनाने के लिए 15,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।
एएमसीए 2 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली निर्माण परियोजना है, जिसके तहत 125 से ज्यादा लड़ाकू विमानों का उत्पादन किया जाना है। डीआरडीओ के अंतर्गत आने वाली एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) इस परियोजना की नोडल एजेंसी है। अप्रैल, 2024 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 5वीं पीढ़ी के स्वदेशी विमानों के डिजाइन और विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी थी। जून में केंद्र सरकार ने एएमसीए के प्रोडक्शन मॉडल को मंजूरी दी थी।
एएमसीए भारत का 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जेट है, जिसे स्वदेशी तकनीक से विकसित किया जा रहा है। 2 इंजन वाला ये विमान हर मौसम में 65,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम होगा। स्टील्थ तकनीक की वजह से ये रडार को भी चकमा दे सकेगा। 25 टन वजनी ये विमान अपने साथ 7,000 किलोग्राम वजन लेकर उड़ सकेगा। आधुनिक हथियारों और सेंसर से लैस इस विमान की रेंज 3,200 किलोमीटर के आसपास होगी।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था, सरकार का ध्यान आत्मनिर्भर भारत की दिशा में है। एएमसीए न केवल रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देगी, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगी। रक्षा मंत्रालय ने कहा था, इस निर्णय का उद्देश्य भारत की स्वदेशी विशेषज्ञता, क्षमता और संसाधनों का उपयोग करते हुए 5वीं पीढ़ी के विमान प्रोटोटाइप का विकास करना है, जो आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।