मानसून से पहले और बाद में मिले आंकड़ों से होगा भूजल का आकलन, मापे जाएंगे गांव के कुओं का जलस्तर
नई दिल्ली। भूजल संरक्षण अभियान के तहत मानसून सीजन से पहले और मानसून के लौट जाने के बाद हर गांव के कुओं का जलस्तर मापने का अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान हर साल चलेगा। इसके लिए ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा की मदद ली जाएगी।
मनरेगा के रोजगार सहायकों की सहायता से ग्रामीण विकास मंत्रालय का डिजिटल एप जलदूत अपडेट किया जाएगा। इससे जल संरक्षण की दिशा में चलाई जा रही योजनाओं के प्रभाव का आकलन किया जा सकेगा। इन्हीं आंकड़ों के आधार पर गांवों की विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलेगी।
जल संरक्षण की दिशा में चलाई जा रही योजनाओं पर कारगर अमल के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को दिशानिर्देश भेज दिए गए हैं। जलदूत नामक एप लांच करने के साथ ही ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के अपने रोजगार सहायकों को इस अभियान से जोड़ दिया है, जो अपनी ग्राम पंचायतों के गांवों और बस्तियों में स्थित दो से तीन कुंओं का जलस्तर मापकर उसका आंकड़ा जलदूत पर दर्ज करेंगे।
मंत्रालय के इस अभियान के पीटे भूजल के स्तर का अध्ययन करना है। भूजल स्तर बढ़ने से ही कुओं में पानी का स्तर ऊपर आ जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस बार मानसून की भारी बरसात हुई है। पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्यों में वर्षा कम हुई है। लेकिन वर्षा का वितरण असामान्य होने के साथ तमाम जगहों पर कम समय में ज्यादा बारिश हुई है।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की अटल भूजल योजना देश के 79 डार्क एरिया घोषित जिलों में चलाई जा रही है। इस पर तकरीबन छह हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में देश के हर जिले में कम से कम 75 तालाबों की खुदाई करने की योजना है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं में खर्च होने वाली धनराशि का बड़ा हिस्सा जल संरक्षण पर खर्च होता है। तालाब, पोखर और जलाशयों के साथ छोटी बड़ी नदियों में बांध बनाकर जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन सारी योजनाओं के प्रभावों का आकलन करने में जलदूत को सहायक माना जा रहा है।
जलदूत एप के सहारे गांवों की बड़ी समस्या के समाधान की संभावना जताई जा रही है। जलदूत एप ग्राम रोजगार सहायक (जीआरएस) को साल में दो बार (मानसून पूर्व और मानसून द) चयनित कुओं के जल स्तर को मापने में सक्षम बनाएगा। भूजल के आंकड़ों का उपयोग ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) और मनरेगा के लिए किया जा सकता है। इन आंकड़ों का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनुसंधान और अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है।
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वाटरशेड विकास, वनीकरण, जल निकाय विकास और नवीनीकरण और वर्षा जल संचयन आदि के माध्यम से जल प्रबंधन में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके बावजूद देश के बड़े हिस्से में भूजल के अत्यधिक दोहन से स्थितियांोचताजनक बनी हुई हैं।