कोटद्वार-पौड़ी

चाई महोत्सव में लिया गांव बचाने का संकल्प

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सांस्कृतिक प्रस्तुति ने मोहा मन
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : पहाड़ में संस्कृति संरक्षण का अनूठा आयोजन चाई ग्रामोत्सव देव पूजन, विचार गोष्ठी एवं भव्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हो गया। इस अवसर पर समृद्ध उत्तराखंड राज्य के लिए पर्वतीय क्षेत्र में स्थित गांव एवं ग्रामीण संस्कृति को बचाने की जोरदार वकालत की गई।
त्रिदिवसीय ग्रामोत्सव के अंतिम दिन आयोजित समापन समारोह का मुख्य अतिथि गो सेवा आयोग उत्तराखंड के अध्यक्ष पंडित राजेंद्र अंथवाल ने दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया। समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा गांव में निवास करती है। गांव के समग्र विकास से ही राष्ट्र का विकास होगा। उन्होंने कहा कि गांव प्राथमिक उत्पाद के केंद्र है, इन उत्पादों को बाजार मिलना चाहिए इससे रोजगार बढ़ेगा और पलायन रुकेगा। विशिष्ट अतिथि समाजसेवी विनोद घनसाला ने कहा कि चाई ग्रामोत्सव एक विशिष्ट उत्सव है और ऐसा महोत्सव पहाड़ के हर गांव में आयोजित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी धर्म, संस्कृत, भाषा और परंपरा को हर हाल में बचाना होगा। धाद पत्रिका के संपादक एवं संस्कृति कर्मी गणेश खुगशाल गणी ने कहा कि चाई ग्रामोत्सव एक अनुष्ठान है और केवल गढ़वाल ही नहीं बल्कि कुमाऊं अंचल भी इस कार्यक्रम से पूरी तरह से प्रभावित है। चाई महोत्सव ने पूरे पहाड़ को नई सीख दी है। उन्होंने कहा कि इस महोत्सव के माध्यम से नई पीढ़ी को संदेश दिया जा रहा है कि वह अपनी जड़ों से जुडें। उन्होंने कहा कि इस महोत्सव ने नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाने का कार्य किया है। यहां बिखरी अद्भुत कला में जीवंत समाज के दर्शन होते हैं और यह अपने आप में महत्वपूर्ण है। उन्होंने चाई ग्रामोत्सव को राष्ट्र एवं संस्कृति को बचाने का अनूठा अभियान बताया। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता मुन्नालाल मिश्रा, राजेश जोशी, सच्चिदानंद बुडाकोटी, सुशील बुडाकोटी, दिनेश बुडाकोटी अशोक बुडाकोटी, संगीत बुडाकोटी, विकास, संतोष, अमन, अनूप, दीपक आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जगमोहन बुडाकोटी एवं संचालन डॉ. पदमेश बुडाकोटी ने किया। इससे पूर्व चौदहवें चाई ग्रामोत्सव के अंतिम दिन मंगलवार को कलाकारों ने विविध रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। भारतीय संस्कृति से जुड़ी प्रस्तुतियों को दर्शकों ने विशेष रूप से सराहा। उत्तराखंड की सांस्कृतिक झांकी ने समारोह में समा बांधा। देव पूजन, हवन, भंडारे और पुरस्कार वितरण के साथ समारोह का समापन हुआ।

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