हिमाचल में आई अचानक बाढ़ ने तबाही मचाई
नई दिल्ली , एजेंसी। इन दिनों हिमाचल प्रदेश समेत भारत के कुछ हिस्सों में भारी बारिश हो रही है। हिमाचल की पहाड़ियों में बारिश ने तबाही बरपा रखी है। राज्य में कई घर और सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं, यहां तक कि दो लोगों की मौत हो गई, जबकि एक अन्य व्यक्ति लापता है। रविवार को क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ के कारण हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के औट के पास 200 से अधिक पर्यटक फंस गए थे। इस तरह की बाढ़ ने देश में अनेक समय पर जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचाया है। जून 2013 में उत्तराखंड में हुई तबाही का कारण भी अचानक आई बाढ़ ही थी।
बीते हफ्ते अचानक आई बाढ़ ने हिमाचल में कहर बरपाया। इससे घरों से लेकर सड़कों तक को नुकसान पहुंचा। मंडी जिले के औट के पास खोती नाला में बाढ़ की रिपोर्ट के बाद मंडी-कुल्लू राष्ट्रीय राजमार्ग बंद कर दिया गया। पराशर झील के पास बागीपुल क्षेत्र में एक और अचानक आई बाढ़ के कारण मंडी-पराशर मार्ग पर बग्गी पुल के पास 200 से अधिक लोग फंस गए। अधिसूचना में कहा गया, ‘इन राजमार्गों पर चलने वाले आम जनता/पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि वे पहाड़ों से सटे सड़कों पर न रहें क्योंकि भूस्खलन/चट्टान गिरने का खतरा अधिक है।’
हिमाचल के कांगड़ा शहर के कई हिस्सों में भी लगातार बारिश के बाद पानी भर गया। अधिकारियों ने कहा कि क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ के कारण सोलन और हमीरपुर जिलों में दो लोग डूब गए। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने घरों और सड़कों और पशु आश्रयों को नुकसान होने की सूचना दी। उनके अनुसार, अचानक आई बाढ़ में एक दर्जन से अधिक वाहन बह गए।
बारिश की वजह से एक विशेष प्रकार की बाढ़, जिससे थोड़े समय में नदी या नाले का जलस्तर बढ़ जाए। अमेरिकी मौसम विज्ञान एजेंसी नेशनल वेदर सर्विस के अनुसार, अचानक बाढ़ तब आती है, जब छह घंटे से भी कम समय में बारिश से जलस्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। यह अक्सर भारी या अत्यधिक वर्षा के कारण होता है। यह स्थिति नदियों या झीलों के पास के क्षेत्रों में उत्पन्न हो सकती है।
ब्रिटेन की राष्ट्रीय मौसम सेवा का कहना है कि अचानक बाढ़ आमतौर पर वहां आती है जहां नदियां संकरी और ढलाननुमा होती हैं, इसलिए वे अधिक तेजी से बहती हैं। ये बाढ़ छोटी नदियों के पास स्थित क्षेत्रों में हो सकती हैं, क्योंकि सड़कें और कंक्रीट जैसी कठोर सतहें पानी को जमीन में अवशोषित नहीं होने देती हैं। एक तथ्य यह भी है कि कभी-कभी बारिश न होने पर भी आकस्मिक बाढ़ आ सकती है। उदाहरण के लिए, किसी तटबंध या बांध के टूटने के बाद या किसी मलबे या बर्फ के जमाव के कारण अचानक पानी छोड़े जाने के बाद।
भारत में आकस्मिक बाढ़ अक्सर भारी या अत्यधिक वर्षा के कारण होती है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कुल वर्षा का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा केवल चार महीनों जून से सितंबर में रहता है। इन्हीं वजहों से इन महीनों के दौरान नदियों में भारी जल-प्रवाह होता है। इसका एक अन्य कारण बादल फटना या तूफान भी हो सकता है।
विशेषज्ञों की मानें तो ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में दवाब और चक्रवाती तूफान भी अचानक बाढ़ का कारण बनते हैं। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट और केरल राज्य बादल फटने से होने वाली अचानक बाढ़ के मामले में अधिक संवेदनशील हैं।
इस बीच मौसम विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी थी कि तापमान में वृद्धि से अचानक बाढ़ में वृद्धि होगी। उन्होंने 2030 तक हिमालय क्षेत्र में तापमान 2.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने और तीव्रता में 2-12 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान जताया है। इसके चलते अचानक बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी, जिससे बड़े पैमाने पर भूस्खलन होगा।
भारत में आकस्मिक बाढ़ का इतिहास रहा है और संभवत: ऐसी सबसे भयानक घटना 13 से 17 जून के बीच 2013 में उत्तराखंड में हुई थी। अचानक आई बाढ़ के कारण 5,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई। आपदा मूल्यांकन के अनुसार, बाढ़ से 3.8 बिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान भी हुआ।
केरल की घातक 2018 बाढ़ मौसम की घटना का एक और उदाहरण थी। अचानक आई बाढ़ में 480 से अधिक लोगों की मौत हो गई और 15 अन्य लापता हो गए, जो दक्षिणी राज्य में लगभग एक सदी में सबसे भीषण बाढ़ थी।
2021 में उत्तराखंड में ऋषिगंगा में अचानक आई बाढ़ से 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई, इसके अलावा चमोली जिले के रेणी और तपोवन इलाकों में भारी तबाही हुई, जहां दो जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान उठाना पड़ा। पिछले साल हिमाचल में जुलाई में किन्नौर की सांगला घाटी में अचानक बाढ़ आई थी।