आइए पब्लिक में बहस कीजिए, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व जजों ने मोदी-राहुल को दिया न्योता
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच में खुली बहस (पब्लिक डिबेट) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आमंत्रित किया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर और एपी शाह ने यह निमंत्रण भेजा है। जस्टिस लोकुर और शाह के साथ-साथ द हिंदू के पूर्व संपादक एन राम भी पत्र लिखने वालों में शामिल हैं। पीएम मोदी और राहुल गांधी को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि बहस का ये प्रस्ताव गैर-पक्षपातपूर्ण और राष्ट्र के व्यापक हित में है।
पूर्व न्यायाधीशों और पत्रकार का कहना है कि गैर-पक्षपातपूर्ण और गैर-व्यावसायिक मंच पर खुली बहस से देश के नागरिकों को बहुत लाभ होगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी। उन्होंने अपने खुले पत्र में लिखा, “यह अधिक प्रासंगिक है क्योंकि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और पूरी दुनिया हमारे चुनावों पर उत्सुकता से नजर रखती है। इसलिए, इस तरह की सार्वजनिक बहस न केवल जनता को शिक्षित करके, बल्कि एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र की सच्ची छवि पेश करने में भी बड़ी मिसाल कायम करेगी।”
इसमें कहा गया है कि रैलियों और सार्वजनिक संबोधनों के दौरान, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) दोनों के सदस्यों ने हमारे संवैधानिक लोकतंत्र से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं। उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री ने आरक्षण, अनुच्छेद 370 और धन पुनर्वितरण पर कांग्रेस को सार्वजनिक रूप से चुनौती दी है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने संविधान के संभावित बदलाव, चुनावी बांड योजना और चीन के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया पर प्रधानमंत्री से सवाल किया है, और उन्हें सार्वजनिक बहस की चुनौती भी दी है। दोनों पक्षों ने अपने-अपने घोषणापत्रों के साथ-साथ सामाजिक न्याय की संवैधानिक रूप से संरक्षित योजना पर उनके रुख के बारे में एक-दूसरे से सवाल पूछे हैं।”हालांकि, पत्र में दोनों ओर से दी गई प्रतिक्रिया को लेकर चिंता व्यक्त की गई है। उन्होंने लिखा, “हम भी जनता के ही सदस्य हैं। हम चिंतित हैं कि हमने दोनों पक्षों से केवल आरोप और चुनौतियां ही सुनी हैं, और कोई सार्थक प्रतिक्रिया नहीं सुनी है। जैसा कि हम जानते हैं, आज की डिजिटल दुनिया गलत सूचना, गलत बयानी और हेरफेर की प्रवृत्ति रखती है। इन परिस्थितियों में, यह सुनिश्चित करना मौलिक रूप से महत्वपूर्ण है कि जनता को बहस के सभी पहलुओं के बारे में अच्छी तरह से शिक्षित किया जाए, ताकि वे मतपत्रों में एक सूचित विकल्प चुन सकें, यह हमारे चुनावी मताधिकार के प्रभावी अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण है।”