देश की राजनीति का बदला मिजाज
“एनडीए” की आशाओं के विपरीत इस बार देश की जनता ने जो जनमत सुनाया है उसने देश की राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदलकर रखती है। बेहद आत्मविश्वास से लबरेज भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी से पूर्व सीअबकी बार 400 पार” का नारा देकर एक नई लहर बनाने की कोशिश की थी लेकिन मतगणना शुरू होने के कुछ घंटे बाद ही यह स्पष्ट हो चुका था कि जनता को भाजपा का यह नया दांव पसंद नहीं आया। चुनाव परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 400 पार तो दूर की बात, खुद भारतीय जनता पार्टी भी बहुमत के आंकड़े को छूने में सफल नहीं हो पाई है। यानी कि यह स्पष्ट है कि अब तक पिछले दो कार्यकाल में बहुमत के साथ शासन करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार यदि एनडीए के नेता चुने जाते हैं तो इस बार वे स्वतंत्र तौर पर फैसले लेने के लिए स्वच्छंद नहीं होंगे। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि सरकार बिना गठबंधन के फ्लोर टेस्ट में पास नहीं हो सकती लिहाजा चुनाव परिणाम आने के बाद अगले दो दिन राजनीतिक उठापटक और राजनीतिक समीकरणों के दौर से भी गुजरेंगे। “इंडिया” गठबंधन ने इस बार शानदार प्रदर्शन किया है खासतौर से कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी ने जिस प्रकार से राजनीति में एक बार फिर अपने कद का आभास कराया है उसने देश की सत्ता में एक तरफा राज करने के सिद्धांत को भी पीछे छोड़ दिया है। निश्चित तौर पर इंडिया गठबंधन अभी सरकार बनाने के लिए जीतोड़ कोशिशे जरूर करेगा लेकिन इसके लिए जादू या आंकड़े 272 को जुटाना काफी टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। लोकसभा चुनाव के रुझानों में एनडीए को झटका लगा है और चार सौ पार का नारा देने वाला एनडीए 300 पार के लिए तरस गया है। भाजपा को उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों में काफी नुकसान झेलना पड़ा। महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश में भी विपक्षी गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा है। उत्तर प्रदेश से भी भाजपा को बड़ी निराशा झेलनी पड़ी है क्योंकि दावा किया जा रहा था कि यहां इस बार समाजवादी पार्टी एवं कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाएगा और भारतीय जनता पार्टी सभी 80 सीटों पर कब्जा करेगी। कहीं ना कहीं भाजपा का यह अति आत्मविश्वास ही उसे ले डूबा है तो वही “राम नाम” का सहारा भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए कोई खास असर नहीं छोड़ पाया। हैरानी की बात तो यह है कि अयोध्या में ही भाजपा अपनी दो सीटें हार गई तो वहीं अमेठी से स्मृति ईरानी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि देश की जनता ने धर्म के बजाय मुद्दों पर इस बार अपने वोट का प्रयोग किया है तो वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीके को भी कहीं ना कहीं जनता ने पसंद नहीं किया है। बनारस से जहां पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी वहीं इस बार उन्हें वहां शुरुआती चरण में कांग्रेस प्रत्याशी से पिछड़ने के बाद जीत हासिल हुई है। वाकई इस बार के चुनाव परिणामों ने विपक्ष को मजबूत करने का काम किया है फिर चाहे वह भूमिका इंडिया गठबंधन निभाए या फिर एनडीए। किसी भी लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है और इस बार विपक्ष अपनी भूमिका कहीं अच्छी तरीके से निभाने में कारगर साबित हो सकती है। चुनाव परिणाम आने के बाद अभी दोनों पक्षों में जोड़-तोड़ की राजनीति का खेल देखे जाने की उम्मीद है हालांकि एनडीए के घटक दल यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वह पूरी तरह से गठबंधन के साथ है लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता ना कोई दोस्त होता है और ना कोई दुश्मन, केवल अवसरवादी परिस्थितियां अक्सर माहौल को बदल देती हैं।