संपादकीय

मौत का समागम

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श्रद्धा और भक्ति के बीच जब झूठ और पाखंड का समावेश होता है तो वहां भक्तों को अंधेरे में रखकर बरगलाने का काम किया जाता है। मनुष्य को देवता समझने वाले ऐसे लोगों की हमारे देश में कमी नहीं है जो अपना सब कुछ भूल कर सर्वस्व लुटाने को तैयार रहते हैं। भक्तों को अंधेरे में रखकर हमारे देश में ऐसे ना जाने कितने ही बाबा लाखों करोड़ों के मालिक बन चुके हैं जिनकी गिनती करना भी हम मुश्किल है। जब तक इन ढोंगी बाबाओ की हरकतें खुलकर सामने आती है तब तक यह लोग अपना ऐसा साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं जिसके आगे शासन प्रशासन भी खुद को झुका हुआ महसूस करता है। हाथरस के एक समागम में एक कथित बाबा के कार्यक्रम के बाद जो कुछ हुआ उसने कई घरों की चिराग बुझा दिए। घटना के बाद प्रशासन को आयोजन में कई कमियां नजर आ रही है लेकिन आयोजन से पहले लाखों की भीड़ उमड़ने का अंदेशा होने के बावजूद भी ना तो स्थलीय परीक्षण किया गया और ना ही व्यापक तौर पर सुरक्षा प्रबंध खड़े किए गए। यही नहीं सेवादारों का भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जो रवैया था वह दंड के योग्य है। हाथरस जिले के मुगलगढ़ी इलाके में जिस जगह समागम किया गया था, वह लगातार हो रही बारिश के बाद दलदल जैसी हो गई थी। मौत के इस समागम में यूपी के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र स्थित फुलगढ़ी गांव में सत्संग के बाद मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद अब कमियां निकाली जा रही है और कुछ दिनों बाद शायद इस घटना को भुला भी दिया जाएगा। हमारे देश में बाबाओं का सैलाब जिस तरीके से बढ़ रहा है और उनकी अंधभक्ति में लोगों का अटूट विश्वास श्रद्धालुओं के दुखों का निवारण भले ही ना करता हो लेकिन इसकी आड़ में कई आपराधिक एवं ढोंगी लोग अकूत संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। कोई इन बाबाओ पर क्या हाथ डालेगा जब बड़े-बड़े राजनेता खुद इन बाबाओ की दहलीज पर चरण वंदन करते हुए नजर आते हैं। सत्ता तक अपनी पहुंच रखने वाले कई बाबा आज सलाखों के पीछे हैं लेकिन उनके अनुयाई आज भी इन्हें सर आंखों पर बिठाकर रखते हैं। इसी अंधभक्ति के कारण देश में बाबाओं का साम्राज्य फल फूल रहा है। कुछ आश्रमों में तो आपराधिक तत्वों का समावेश हो चुका है। 121 लोगों की मौत के बाद अब कानूनी कार्रवाई की जा रही है जिसमें आयोजकों में शामिल एक मुख्य सेवादार और आयोजक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है। अंधभक्ति धर्म के प्रति श्रद्धा का यह वह रूप है जिसमें कुछ स्वार्थी लोग श्रद्धालुओं को मूर्ख बनाने का कार्य करते हैं और श्रद्धालु भी उनकी बातों में आकर ऐसे लोगों को अपना भगवान मानने लगते हैं। कथित बाबाओ के सम्मोहन में भक्तों को ना तो छल कपट नजर आता है और ना ही उस इंसान की पीछे छिपा उसका आपराधिक अतीत। धर्म की आड़ में दुख और कष्टों को दूर करने का झूठ प्रलोभन देने वाले इन बाबाओ की दुकान पहले भी चलती आई है और आगे भी चलती रहेगी इसका कोई तोड़ दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही वर्ग इस कुचक्र से बाहर निकल नहीं पाया है।

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