आसान नहीं गांव का जीवन यापन, पलायन से गांव हो रहे वीरान
जयन्त प्रतिनिधि।
पौड़ी : आसान नहीं गांव का जीवन यापन, लगातार पलायन के कारण सामान्य परिवारों पर पड़ा असर। डांगी गांव एक दशक पूर्व पूरी तरह आबाद था। गांव के हर चौक में किलकारी गूंजती थी। गांव में आंगनबाड़ी केंद्र था जहां बच्चों की किलकारी सुनने मिलती थी। लेकिन बीते एक दशक में गांव में गिने चुने परिवार ही रह गए है। गांव में कभी खेती बाड़ी प्रर्याप्त मात्रा में होती थी। लोगों की मुख्य आजीविका कृषि थी। गांव की अच्छी खासी जनसंख्या थी।
शिक्षा के लिए गांव में ही प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय था। प्राथमिक विद्यालय छात्र संख्या शून्य होने से बंद हो है। भवन अब केवल मतदान के लिए ही उपयोग किया जाता है। गांव में ही दो मील दूरी पर जंगल पार हाईस्कूल है। जहां गांव के मात्र तीन छात्र ही पढ़ते हैं। जंगली जानवरों के भय से उन्हें अभिभावक रोज विद्यालय तक छोड़ने और लाने जाने का सिलसिला अभी भी जारी है। क्योंकि उन्हें रोज गुलदार और भालू के साक्षात दर्शन हो रहे है। जिस उनका दिल दहल जाता है। वन विभाग भी दो तीन दिन गांव में बैठक कर झाड़ियां आदि काटने की सलाह देकर कुछ बम देकर अपने कर्तव्य की निर्वहन कर गए, हालांकि इतने ही संख्या के छात्र पड़ोसी गांव थनुल के भी विद्यालय में पढ़ने आते है। उन्हें भी रोज उनके माता -पता विद्यालय छोड़ने और फिर लाने जाते है। ऐसे में उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही। क्षेत्र के लोगों ने पूर्ववर्ती दौर में शिक्षा के लिहाज से कई गांवो के केंद्र में यह विद्यालय बनवाया था। ताकि सभी को सहूलित हो, लेकिन छोटे-छोटे गांव सड़क के अभाव में पूरी तरह पलायन हो जाने से विद्यालय की छात्र संख्या भी दो अंकों में सिमट गई। हालांकि विद्यालय में शिक्षकों और कर्मचारी का कोई टोटा नहीं है। मानकों के अनुसार विद्यालय के शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों सहित सभी पद सृजित है। केवल छात्र-छात्राओं का ही टोटा है। एक दौर में विद्यालय में शिक्षक-शिक्षिकाओं का टोटा होता था। छात्र-छात्राओं को बैठने और पढ़ने के लिए भवन नहीं होते थे और अब भवन, शिक्षक-शिक्षिकाएं प्रर्याप्त संख्या में तैनात है। लेकिन छात्र-छात्राओं की संख्या दो अंकों तक भी नही है। आने वाले समय में यह विद्यालय भी प्राथमिक विद्यालय की तरह बंद हो जाएगा।