उत्तराखंड

करवाचौथ को बाजारों में रही चौतरफा रौनक

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ऋषिकेश। ऋषिनगरी में करवाचौथ की पूर्व संध्या पर बाजारों में चौतरफ रौनक नजर आई। शनिवार को करवाचौथ को लेकर शहर के बाजारों में महिलाओं व युवाओं की भारी भीड़ रही। शहर के बाजारों में सोलह शृंगार को पूरा करने वाली दुकानें भी देर शाम तक खुली रहीं। करवाचौथ पर शृंगार सामग्री की दुकानों के अलावा कपड़ा, पूजा सामग्री, मेवों तथा सराफा बाजार में जमकर खरीदारी हुई। शहर में जगह-जगह मेंहदी महिलाओं ने मेंहदी लगाई। ऋषिकेश में शनिवार को महिलाओं ने अपनी तैयारियां पूरी कीं। रविवार तड़के महिलाएं करवा चौथ का व्रत शुरू करेंगी। पूरे दिन बिना खाए-पिये रात को चंद्रमा के दर्शन कर व्रत पूरा करेंगी। ज्योतिष डॉ. कैलाश घिल्डियाल के अनुसार रविवार को चंद्रोदय रात्रि 07 बजकर 54 मिनट पर होगा। करवा चौथ के दिन सुहागिनें अपने पति के दीघार्यु और मंगल कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। जिन लड़कियों की शादी तय हो चुकी हो उनको भी करवाचौथ का व्रत रखना चाहिए। यह व्रत बड़ा कठिन होता है, इसमें पानी भी नहीं पी सकते हैं। ज्योतिष बताते हैं कि शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर उसकी विधिवत पूजन करने के पश्चात पति के हाथों जल ग्रहण करने पर ही यह व्रत पूर्ण होता है। उसके बाद भोजन किया जाता है। इस व्रत से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना भी जाग्रत होती है। वह बताते हैं कि करवाचौथ का व्रत रखने वाली सभी स्त्रियां कामना करती हैं कि जिस तरह जन्म-जन्म तक पार्वती ही शिव की अर्द्धांगिनी बनी वैसे ही मैं भी अपने पति की संगिनी बनी रहूं। करवा चौथ के दिन शिव परिवार का पूजन किया जाता है। सती-पार्वती पतिव्रताओं का आदर्श हैं। इस व्रत में चंद्रमा को निमित्त बनाकर स्त्रियां शिव परिवार का पूजन करती हैं और प्रार्थना करती हैं कि जिस प्रकार सती-पार्वती का सौभाग्य अजर-अमर है वैसे ही मैं भी जन्म-जन्मांतरों तक सौभाग्यवती बनी रहूं। मेरे भी गणेश जैसी बुद्धिमान और कार्तिकेय जैसी बलवान और सभी का हित करने वाली संतान हो।
करवा चौथ में चंद्रमा का महत्व
चंद्रमा को देवता माना गया है। सृष्टि को चलाने में चंद्रमा का बहुत अहम योगदान है। शास्त्रों में चंद्रमा को औषधियों और मन का अधिपति देवता माना गया है। चंद्रमा की किरणें वनस्पतियों और मानव मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। चंद्रमा की किरणें अमृत स्वरूप हैं, दिनभर उपवास के बाद चंद्रमा को छलनी की ओट में जब स्त्रियां देखती हैं तो उनके मन में पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव उत्पन्न होता है। उनके मुख पर शरीर पर एक विशेष तेज छा जाता है।
करवा चौथ की पूजन विधि
ज्योतिष डॉ. कैलाश घिल्डियाल बताते हैं कि करवा चौथ को पूरे दिन निराहार रहें, जल भी ग्रहण न करें। धार्मिक कार्यों में अपना मन लगायें। शाम को चंद्र पूजन के पश्चात तांबे या मिटटी के करवे में चावल, काले उड़द की दाल, सुहाग का सामान चूड़ी. साड़ी, सिंदूर, बिंदी, कंघी, शीशा, रिबन, रुपये रखकर दान करना चाहिए। सासु मां के पांव छूकर उन्हें फल, मेवा, सुहाग का सामान दक्षिणा सहित देना चाहिए। एक नियम यह भी है कि करवाचौथ का सामान मायके से आता है। कुछ जगहों पर स्त्रियां आपस में एक-दूसरे को सुहाग का सामान देकर शुभकामनाएं देती हैं। आजकल अविवाहित युवतियां भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं। ताकि उन्हें एक आदर्श पति मिल सके।

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