नई दिल्ली , सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाते हुए उच्च न्यायालय के जज के खिलाफ दिए गए लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि यह बहुत परेशान करने वाली बात है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चिंता भी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की शिकायत करने वाले शिकायतककर्ता को नोटिस जारी किया है।
लोकपाल एक मामले में 27 फरवरी को अपने आदेश में कार्यरत हाई कोर्ट के जज, एक एडिशनल जिला जज और एक अन्य हाई कोर्ट के जज को एक निजी कंपनी के पक्ष में प्रभावित करने का आरोप लगाया था। इस मामले में लोकपाल ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि हाई कोर्ट का जज लोकपाल अधिनियम की धारा 14 (1) (द्घ) के दायरे में एक व्यक्ति के रूप में योग्य होगा।
जस्टिस गवई ने लोकपाल के तर्क पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह परेशान करने वाली बात है। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्याख्या गलत है और हाई कोर्ट को लोकपाल के अधीन लाने का इरादा नहीं था। लोकपाल ने अपनी कार्यवाही आगे बढ़ाने से पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र भेज कर अपने निष्कर्ष से अवगत करवाया था।
चीफ जस्टिस ने मसले को महत्वपूर्ण मानते हुए इस पर संज्ञान लिया और 3 वरिष्ठतम जजों जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच का गठन किया। 3 जजों की बेंच के सामने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल स्वेच्छा से पेश हुए और कोर्ट की सहायता की मंशा जताई। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के जज का पद संवैधानिक पद है. इस पद को संविधान से कुछ संरक्षण हासिल हैं। हाईकोर्ट के जज को लोकपाल के दायरे में रखना लोकपाल कानून की मंशा नहीं थी। वरिष्ठ वकील सिब्बल ने भी इस बात से सहमति जताई।