कोटा ,कोटा में ट्रैफिक जाम सिर्फ गाडिय़ों को ही नहीं, बल्कि अब जि़ंदगियों को भी रोकने लगा है! 3 साल के मासूम हरिओम की जान चली गई, लेकिन सिंगल लेन वाली यह सडक़ अपनी सुस्त चाल से टस से मस नहीं हुई। माता-पिता हॉस्पिटल जाने के लिए गुहार लगाते रहे, लेकिन जाम को कोई जल्दी नहीं थी—वो आराम से पसरा रहा, मानो ‘कछुआ गति’ का स्वर्णिम युग वापस आ गया हो!अब आप ही सोचिए—हाईवे पर जाम हटाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष के “निर्देश” जारी होते हैं, अस्थायी डिवाइडर लगाए जाते हैं, पुलिस चौकी बनाई जाती है… और फिर भी जाम ऐसा अड़ा रहता है कि वो खुद किसी ‘वीआईपी’ से कम नहीं लगता! शायद यही वजह है कि सिस्टम से ज्यादा यहां ट्रैफिक की पकड़ मजबूत है।वैसे, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के बीच से गुजरने वाली यह सडक़ असल में “ट्रैफिक रिजर्व” बन गई है। प्रशासन को शायद इस बात की उम्मीद थी कि गाडिय़ां और लोग खुद ही जंगल का रास्ता पकड़ लेंगे, लेकिन अफसोस… बाघों के इलाके में इंसान फंसे हुए हैं और इंसानों की बनाई व्यवस्था जंगलराज में तब्दील हो चुकी है।15 दिन पहले भी एक और जान चली गई थी, लेकिन किसी ने सबक लिया? नहीं! अब अगली मौत का इंतजार है, ताकि नए सिरे से ‘निंदा’, ‘जांच समिति’ और ‘निर्देश’ का ड्रामा दोहराया जा सके।