मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपने दामाद के साथ रहने वाली सास हैं कानूनी प्रतिनिधि : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, एजेंसी। मोटर वाहन अधिनियम (एमवी अधिनियम) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अपने दामाद के साथ रहने वाली सास मोटर वाहन अधिनियम (एमवी अधिनियम) के प्रावधान के तहत एक श्कानूनी प्रतिनिधिश् है। याचिका के तहत मुआवजे के दावे की हकदार हैं। न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति ष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि भारतीय समाज में सास का बुढ़ापे में उनके रखरखाव के लिए अपनी बेटी और दामाद के साथ रहना और अपने दामाद पर निर्भर रहना कोई असामान्य बात नहीं है। पीठ ने कहा कि यहां सास मृतक की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती है, लेकिन वह निश्चित रूप से उसकी मृत्यु के कारण पीड़ित है। इसलिए हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि वह एमवी अधिनियम की धारा 166 के तहत एक कानूनी प्रतिनिधि है। और याचिका को बनाए रखने का दावे की हकदार है।
2011 में एक मोटर वाहन दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति की पत्नी द्वारा दायर एक अपील पर टिप्पणियां सामने आई, जिसमें केरल उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें कहा गया था कि सास अपने दामाद के साथ नहीं रह रही नहीं थी। ऐसे में मृतक के कानूनी प्रतिनिधि और मुआवजे की राशि को भी कम कर दिया गया। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ताओं को मुआवजे के रूप में 74,50,971 रुपये का मुआवजा दिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे घटाकर 48,39,728 रुपये कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान श्न्यायसंगत और उचित मुआवजेश् की अवधारणा को सर्वोपरि महत्व देते हैं। यह एक लाभकारी कानून है, जिसे पीड़ितों या उनके परिवारों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। एमवी अधिनियम की धारा 168 न्यायसंगत मुआवजे की अवधारणा से संबंधित है, जिसे निष्पक्षता, तर्कसंगतता और समानता की नींव पर निर्धारित किया जाना चाहिए। हालांकि इस तरह का निर्धारण कभी भी अंकगणितीय रूप से सटीक या सही नहीं हो सकते हैं। अदालत द्वारा आवेदक द्वारा दावा की गई राशि के बावजूद न्यायसंगत और उचित मुआवजा देने का प्रयास किया जाना चाहिए।