स्वामी वामदेव महाराज की मूर्ति स्थापना के लिए जिला अधिकारी से मिला संतों का प्रतिनिधिमण्डल
स्वामी वामदेव महाराज की मूर्ति स्थापना में सहयोग करे प्रशासन: श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह
हरिद्वार। विरक्त शिरोमणि स्वामी वामदेव महाराज की मूर्ति की प्रतिस्थापना हेतु कई संतों के प्रतिनिधिमण्डल ने जिला अधिकारी सी रविशंकर से भेंट वार्ता की। इस दौरान संतों ने जिला अधिकारी को स्वामी वामदेव महाराज के जीवन चरित्र पर आधारित पुस्तक भी भेंट की। प्रतिनिधिमण्डल में शामिल रहे श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने बताया कि स्वामी वामदेव महाराज की मूर्ति स्थापना के संबंध में जिलाधिकारी को बहुत सारी मनगढ़ंत सूचनाएं दी गई थी। कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा भ्रम फैलाने का प्रयास किया जा रहा था। संतों की जिला अधिकारी से मुलाकात के बाद भ्रम पूर्णतया समाप्त हो गया है। श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार तथा राममंदिर निर्माण आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वामी वामदेव महाराज की स्मृतियों को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए उनकी मूर्ति स्थापना में प्रशासन को सहयोग करना चाहिए। हिन्दू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरी महाराज ने कहा कि हिन्दू धर्म के उत्थान व राममंदिर आंदोलन में संत समाज को एकजुट कर अग्रणी योगदान करने वाले स्वामी महादेव महाराज एक महान विरक्त संत थे। ऐसे विलक्षण संत की मूर्ति स्थापित होने से युवा पीढ़ी को धर्म संस्कृति का बोध होगा। लेकिन कुछ असामाजिक तत्व मूर्ति स्थापना को लेकर अनर्गल प्रचार कर भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। भेंटवार्ता के दौरान जिलाधिकारी ने कहा कि जल्द से जल्द स्वामी वामदेव जी महाराज की मूर्ति की प्रति स्थापना की जाएगी। मूर्ति पहले पावनधाम चौराहे पर स्थापित होनी थी। जिसका शिलान्यास यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने 1998 में किया तथा मूर्ति का अनावरण 18 अगस्त 2006 को हरिद्वार के प्रमुख संतो तथा जिला प्रशासन के सहयोग से संपन्न हुआ था। जिसे हाईवे प्रशासन व जिला प्रशासन ने आश्वासन देकर हटाया था तो प्रशासन की जिम्मेदारी है कि उस मूर्ति की ससम्मान पुन: स्थापना की जायेगी। प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरी करेगा। प्रतिनिधिमण्ड में निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेवसिंह महाराज, कोठारी महंत जसविन्दर सिंह महाराज व महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि के साथ स्वामी विष्णु देव आनंद त्यागी महाराज, स्वामी दिव्य प्रकाश महाराज तथा अखाड़े के अन्य संत भी शामिल रहे।