कोटा में फिर टूटा एक सपना : नीट छात्र का सुसाइड और सवालों की गूंज

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कोटा , कोटा, जो कभी मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले छात्रों का मक्का माना जाता था, अब लगातार छात्र आत्महत्याओं की भयावह कहानियों से गूंज रहा है। मंगलवार सुबह एक और नीट अभ्यर्थी, 18 वर्षीय अंकुश मीणा, ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सुबह 8.30 बजे, जब अंकुश ने अपने पिता से फोन पर बात की, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह उनकी आखिरी बातचीत होगी। करीब आधे घंटे बाद, जब उसका भाई और मकान मालिक पहुंचे, तो सब कुछ खत्म हो चुका था।
कोटा की व्यवस्था पर बड़ा सवाल
अंकुश कुछ दिन पहले ही नए किराए के कमरे में शिफ्ट हुआ था, क्योंकि उसका पुराना पीजी जिस मकान में था, वह बैंक ने सीज कर दिया था। मकान मालिक के मुताबिक, उसने परीक्षा के हवाले से कुछ दिनों के लिए रहने की अनुमति मांगी थी।
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या यह सिर्फ व्यक्तिगत कारणों से हुआ सुसाइड है, या फिर इस शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बन चुके मानसिक दबाव की एक और बलि?
राजनीति और संवेदनहीनता
पिछले कुछ महीनों में कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ी है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इसे डरावना और हृदयविदारक बताया था। लेकिन क्या सिर्फ चिंता जताने से हल निकलेगा?
समाधान की दिशा में ठोस कदम कब?
हर बार एक सुसाइड होता है, पुलिस जांच करती है, परिजन बिलखते हैं, और फिर वही कहानी दोहराई जाती है। आखिर कब शिक्षा प्रणाली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देगी? क्या प्रतियोगी परीक्षाओं का यह दबाव अब मौत का कारण बनता रहेगा?
कोटा को अब सिर्फ कोचिंग हब नहीं, बल्कि छात्रों के सपनों और उनकी भावनाओं की सुरक्षा का केंद्र भी बनना होगा। वरना यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा, और हम सिर्फ संवेदनाएं व्यक्त करते रह जाएंगे।
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