राज्य बनने के बाद बुनियादी मुद्दों पर ईमानदारी से काम नहीं हुआ
हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखण्ड में भू-कानून लागू करने की मांग की
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। यूथ कांग्रेस कोटद्वार विधानसभा अध्यक्ष विजय रावत ने कहा कि राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड अधिकांश समय राजनीतिक अस्थिरता के चंगुल में रहा। राज्य के बुनियादी मुद्दों पर ईमानदारी से काम नहीं हो पाया। उत्तराखंड पृथक राज्य की मांग को लेकर पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की जो मूल भावना इस क्षेत्र के नागरिकों व पर्वतीय अंचल के विकास को लेकर थी उत्तराखंड राज्य बनने के उपरांत उस दिशा में अभी तक निराशा ही हाथ लगी है। पर्वतीय क्षेत्र के नागरिकों व इस क्षेत्र के विकास के लिए यह आवश्यक है कि इस क्षेत्र में एक मजबूत भू-कानून लागू किया जाए। जो कि यहां के मूल निवासियों के हितों की रक्षा करने में सक्षम हो।
विजय रावत ने कहा कि जब उत्तराखंड राज्य अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा था तब भी इस पर्वतीय क्षेत्र में बाहरी व्यक्तियों द्वारा भूमि खरीद की अधिकतम सीमा 500 वर्ग मीटर थी। जिसे पृथक प्रदेश बनने के बाद संशोधित कर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया। परन्तु 2018-19 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा भूमि खरीद सीमा को समाप्त कर बाहरी व्यक्तियों के लिए उत्तराखंड में जमीन खरीदने पर लगी पाबंदी खत्म कर भाजपा सरकार द्वारा उत्तराखंड की प्रकृति के खिलाफ निर्णय लिया गया। भू-कानून में बदलाव कर उत्तराखण्ड की भावना को कमजोर कर यहां के मूल निवासियों के हक हकूकों पर डाका डालने का कार्य किया गया। यहां की जमीनों को भू माफियाओं के हवाले करने का कार्य किया गया। हम एक मजबूत भू-कानून चाहते हैं, जिससे प्रदेश के मूल निवासियों के हक-हकूक पर डाका ना डाला जा सके। देश के अंदर सभी पर्वतीय क्षेत्रों हिमाचल, नागालैंड, मिजोरम आदि सभी हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में बाहरी व्यक्तियों के जमीन खरीदने पर पाबन्दियां। हिमाचल प्रदेश में धारा 371 लागू है, जिसके तहत किसी भी बाहरी व्यक्ति को जबकि उसे हिमाचल प्रदेश में रहते हुए 30 वर्ष तक का समय ना हो गया है, यहां पर जमीन खरीदने में पाबंदी है। ठीक इसी प्रकार का कानून (धारा 371) उत्तराखंड प्रदेश में भी लागू किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ उत्तराखंड में नया भूमि बंदोबस्त भी लागू करना चाहिए। 1962 के बाद प्रदेश में भूमि बंदोबस्त नहीं हुआ। नया भूमि बंदोबस्त आने के बाद मूल निवासियों के हक हकूक बनें रहेगें और पलायन भी रुकेगा। यहां के स्थानीय निवासियों के हकों को सुरक्षित रखा जा सके व बाहरी भू-माफियाओं को यहां पर जमीन की खरीद फरोख्त कर यहां की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का षड्यंत्र ना रचा जा सके।