मेडिकल जगत का अजूबा! 4 साल के बच्चे की नाक में उग आया दांत; एम्स के डॉक्टरों ने दी नई जिंदगी

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गोरखपुर , डॉक्टरों को क्यों भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में देखने को मिला है। यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों ने एक बेहद दुर्लभ और जटिल ऑपरेशन कर चार वर्षीय मासूम की नाक के अंदर से दांत निकालकर उसे नई जिंदगी दी है। बच्चा पिछले छह महीने से असहनीय दर्द से तड़प रहा था और उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। पूर्वांचल में अपनी तरह का यह पहला सफल ऑपरेशन है।
गोरखपुर के चौरीचौरा निवासी चार साल के बच्चे को पिछले छह महीने से जबड़े और नाक के पास असहनीय दर्द हो रहा था। परेशान परिजन उसे कई निजी अस्पतालों में ले गए, लेकिन उसकी तकलीफ बढ़ती ही गई। अंत में वे एम्स के दंत रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन डॉ. शैलेश कुमार के पास पहुंचे।
डॉ. शैलेश ने जब बच्चे की विस्तृत जांच और स्कैन कराया तो वे भी हैरान रह गए। रिपोर्ट में पता चला कि बच्चे का एक दांत असामान्य रूप से उसकी नाक के अंदर विकसित हो गया था और उससे एक जबड़े का सिस्ट (गांठ) भी जुड़ा हुआ था। यह एक अत्यंत दुर्लभ और चिकित्सकीय रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति थी।
मामले की गंभीरता को देखते हुए डॉ. शैलेश ने इसकी जानकारी एम्स की कार्यकारी निदेशक व सीईओ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. विभा दत्ता को दी। कार्यकारी निदेशक की सीधी निगरानी में एक विशेषज्ञ टीम का गठन किया गया। एनेस्थीसिया विभाग ने विशेष तैयारियों के साथ बच्चे को बेहोश किया, जिसके बाद डॉ. शैलेश कुमार और उनकी टीम ने घंटों चले इस चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। बच्चा अब पूरी तरह स्वस्थ है और उसे निगरानी के लिए विशेष वार्ड में रखा गया है।
डॉ. शैलेश ने बताया कि करीब एक साल पहले बच्चे के चेहरे पर लगी चोट इस समस्या का संभावित कारण हो सकती है। उन्होंने अभिभावकों से अपील की कि बच्चों के चेहरे या जबड़े में लगी किसी भी चोट को कभी भी हल्के में न लें और तुरंत किसी विशेषज्ञ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन से परामर्श लें। उन्होंने कहा कि अगर समय पर सही इलाज मिलता तो शायद इस ऑपरेशन की नौबत ही नहीं आती। इस दुर्लभ केस को अब एक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने की तैयारी भी की जा रही है। पहले ऐसे जटिल मामलों के लिए मरीजों को दिल्ली या लखनऊ जैसे बड़े शहरों का रुख करना पड़ता था।

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