आमसौड़ की आपदा: आशियाने के साथ अब रोजगार की भी बढ़ी चिंता
केलापानी की पहाड़ी से हुई तबाही के बाद गांव छोड़ने को मजबूर ग्रामीण
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : कोटद्वार-दुगड्डा के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पड़ने वाला सुंदर गांव आमसौड़ इन दिनों आपदा की मार झेल रहा है। हालत यह है कि अब आपदा के साथ ही ग्रामीणों पर पलायन व रोजगार की भी मार पड़ने लगी है। गांव से लगातार हो रहे पलायन ने किराना व छोटी-मोटी दुकान चलाने वालों के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है। वहीं, केलापानी की पहाड़ी से आए मलबे में दबने से कई काश्तारों की मेहतनत से लगाई गई फसल भी पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। जबकि, अधिकांश काश्तकार खेती से ही अपनी आर्थिकी चलाते हैं।
आमसौड़ में भूस्खलन का सिलसिला बीते वर्ष से शुरू हुआ। हालांकि, बीते वर्ष कोई अधिक नुकसान नहीं हुआ। लेकिन, इस वर्ष बीती 22 अगस्त की मध्य रात्रि को अतिवृष्टि से केलापानी की पहाड़ी का हिस्सा मलबे व बोल्डर के रूप में गांव के ऊपर आ गया था। भारी मात्रा में आया मलबा व बोल्डर ग्रामीणों के घरों के अंदर घुस गया था। साथ ही खेतों में लहरा रही पूरण सिंह सहित अन्य काश्तकारों की गेंहू की फसल भी बर्बाद हो गई थी। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे सीएचसी सेंट चलाने वाले युवा सुशील की दुकान का हिस्सा भी बोल्डर की चपेट में आने से धराशायी हो गया था। दुकान में रखा अधिकांश सामान मलबे से पूरी तरह बर्बाद हो गया। ऐसे में अब युवा सुशील के समक्ष भी रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। आमसौड़ में किराना की दुकान चलाने वाले विनोद ने बताया कि एक समय सौ से अधिक परिवारों का आमसौड़ गांव आज पलायन को मजबूर हो रहा है। आपदा के दंश से 20 से अधिक परिवार कोटद्वार व दुगड्डा किराए के कमरों में चले गए हैं। जबकि, कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो घर का पूरा सामान भी अपने साथ ले गए और मकान पर ताला लगा गए हैं। आमसौड़ में छोटी-छोटी दुकानें चला रहे ग्रामीणों के साथ ही खेती से रोजगार सृजित करने वालों के समक्ष रोजगार का संकट खड़ा होने लगा है।
विस्थापन की उठा रहे मांग
पिछले दो वर्षों से गांव के ऊपर स्थित केलापानी की पहाड़ पर भूस्खलन हो रहा है। छह जुलाई को भी पहाड़ी का हिस्सा दकरते हुए भारी मलबे व बोल्डर के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गया था। आपदा की जद में आए ग्रामीण लगातार सरकार से उनके विस्थापन की मांग उठा रहे हैं। लेकिन, अब तक सरकार ने विस्थापन को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की। स्वयं की सुरक्षा को देखते हुए ग्रामीण पलायन को मजबूर हो रहे हैं।