आशियानों के साथ भविष्य के सपने भी ले गई खोह नदी, सैकड़ों परिवार हुए बेघर
13 अगस्त की रात खोह नदी ने आबादी क्षेत्र में मचाई थी तबाही
राहत शिविर में शरण लेने को मजबूर हो गए सैकड़ों परिवार
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : 13 अगस्त की रात विकराल रूप धारण कर आबादी में पहुंची खोह नदी ने खूब तबाही मचाई। आशियाने तबाह होने से 33 से अधिक परिवार बेघर हो गए हैं। खोह नदी पीड़ितों के घर ही नहीं बल्कि उनके भविष्य के सपनों को भी अपने साथ बहाकर ले गई।
कोटद्वार और उसके आसपास के क्षेत्रों में आठ अगस्त व 13 अगस्त की रात मूसलाधार बारिश हुई। इस बारिश से प्रभावित परिवार राहत शिविरों में रहकर उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब खोह नदी व बहेड़ा स्रोत गदेरा उफान पर आए। दरअसल, खोह नदील व बहेड़ा स्रोत के उफान पर आने से क्षेत्र में करीब चालीस परिवार बेघर हो गए। प्रशासन ने इन परिवारों को विभिन्न स्थानों पर बनाए राहत शिविरों में ठहराया हुआ है। राहत शिविर में रह रहे इन परिवारों के समक्ष कई समस्याएं खड़ी होने लगी है। पीड़ित राजकुमार ने बताया कि उन्होंने कुछ दिन पूर्व ही डेढ़ लाख रुपये की लागत से अपने भवन की मरम्मत करवाई थी। लेकिन, कुदरत उसे अपने साथ बहाकर ले गया।
बहन की शादी र्की ंचता घर भी गया
पिता की मौत के बाद मेहनत-मजदूरी कर अपना परिवार चला रहे नितिन के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो गई है। नितिन अपनी बहन की शादी के लिए पैसा जोड़ रहे थे। लेकिन, खोह नदी उनके आशियाने को ही लेकर चली गई। अब नितिन व उनका पूरा परिवार राहत शिविर में ही दिन काट रहे हैं।
कुदरत ने छीन लिया आशियाना
कोटद्वार व आसपास के क्षेत्रों में आठ अगस्त व 13 अगस्त की रात खोह नदी व बहेड़ा स्रोत गदेरा ने जमकर तबाही मचाई। आठ अगस्त की रात हुई बारिश से जहां काशीरामपुर तल्ला में दस भवन जमींदोज हो गए, वहीं बहेड़ा स्रोत में नौ भवन समा गए। आमजन इस हादसे से उबरा भी न था कि 13 अगस्त की रात पुन: दोनों नदियां उफान पर आई और 33 भवन नदी की भेंट चढ़ गए।
पाई-पाई जोड़कर बनाए थे भवन
प्रशासन की ओर से आपदा प्रभावित को विभिन्न स्थानों पर रखा गया है। लेकिन, इन राहत शिविरों में आपदा प्रभावितों की आंखों में नमी आसानी से देखी जा सकती है। इनमें कई ऐसे हैं, जिन्होंने नदी किनारे सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर अपने भवन बनाए थे। सरकारी तंत्र ने ऐसे भवन स्वामियों के भवनों को अवैध घोषित कर मुआवजा देने से इंकार कर दिया है। पाई-पाई जोड़ जिस भवन को खड़ा किया, उसके जमींदोज होने के बाद अब प्रभावितों को भविष्य की चिंता सताने लगी है।
सरकारी सिस्टम नहीं ले रहा सुध
गाड़ीघाट, झूलापुल बस्ती व काशीरामपुर तल्ला में बाढ़ प्रभावित परिवार पिछले चार दिन से धर्मशाला, मंदिर व स्कूलों में रात काट रहे हैं। बेघर हुए इन परिवारों के समक्ष कई संकट खड़े होने लगे हैं। मकान बहने के बाद केवल तन पर पहने कपड़े ही बचे हुए हैं। पीड़ितों का आरोप है कि उनके पास छोटे बच्चे को दूध पिलाने तक के पैसे नहीं बचे हैं। लेकिन, सरकारी तंत्र ने राहत के नाम पर फूटी कौड़ी तक नहीं दी। ऐसे में उन्हें अपने व अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है।