नई दिल्ली , केरल हाई कोर्ट ने मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति का किसी विशेष जाति या वंश से होना पुजारी बनने की शर्त नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कि हिंदू धर्म के किसी भी ग्रंथ में यह नहीं लिखा है कि केवल किसी खास जाति या वंश का व्यक्ति ही पूजा करवा सकता है।
अदालत की टिप्पणी:
जस्टिस राजा विजयराघवन और जस्टिस के. वी. जयकुमार की खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई यह दावा करता है कि केवल किसी एक जाति के लोग ही पुजारी बन सकते हैं, तो उसे संविधान से कोई संरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट ने यह बात त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड और केरल देवस्वम रिक्रूटमेंट बोर्ड की उस नीति पर सुनवाई के दौरान कही, जिसमें केवल तंत्र विद्यालयों से प्रमाणपत्र रखने वाले उम्मीदवारों को ही पुजारी पद के लिए योग्य माना गया था।
दरअसल, केरल में अखिल केरल तंत्री समाजम नाम की एक सोसायटी है, जिसमें लगभग 300 पारंपरिक तंत्री परिवार जुड़े हुए हैं। यह सोसायटी तंत्र विद्यालय चलाती है, जहाँ मंदिरों की परंपराओं और पूजा पद्धतियों का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसी सोसायटी की डिग्री को पुजारी भर्ती के लिए आवश्यक माना जा रहा था। याचिका में सवाल उठाया गया था कि जब यह विद्यालय मुख्यत: ब्राह्मणों के लिए खुला है, तो यह अन्य जातियों के उम्मीदवारों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार है। हाई कोर्ट ने कहा कि धर्म में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो किसी विशेष जाति या परंपरा के लोगों को ही अर्चक बनने का अधिकार देती हो। कोर्ट ने 1972 के सुप्रीम कोर्ट के सेशम्मल बनाम तमिलनाडु मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पुजारियों की नियुक्ति एक सांसारिक (सेक्युलर) प्रक्रिया है और यह ट्रस्टियों द्वारा तय की जाती है, न कि धार्मिक अनिवार्यता के तहत।