पर्यावरणीय चुनौतियों से जुड़े पहलुओं पर किया मंथन

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श्रीनगर गढ़वाल : हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में जारी हिमालयी क्षेत्र में एरोसोल, वायु गुणवत्ता एवं जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को विभिन्न विषयों पर केंद्रित अनेक समानांतर वैज्ञानिक सत्र आयोजित किए गए। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि सत्रों में देश-विदेश के वैज्ञानिकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया और पर्यावरणीय चुनौतियों से जुड़े विविध पहलुओं पर विचार-विमर्श किया। वक्ता डॉ. रंजीत कुमार ने ग्लोबल एयर क्राइसिस ब्रिजिंग ट्रेडिशनल विस्डम एंड मार्डन साइंस पर अपने विचार प्रस्तुत किए। कहा कि वायु प्रदूषण केवल एक तकनीकी या वैज्ञानिक समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली, संस्कृति और ज्ञान परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ विषय है। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि प्रत्येक वर्ष लगभग 70 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण होती है। डॉ. दन मणि लाल ने एरोसोल क्लाउड लाइटनिंग इंटरेक्शन ऑवर इंडो एंड गैंगेटीक प्लेन में एरोसोल और वायुमंडलीय प्रक्रियाओं के जटिल संबंधों पर प्रकाश डाला। बताया कि इंडो-गैंगेटिक मैदान में एरोसोल की मात्रा में वृद्धि से बादलों की सूक्ष्म संरचना, वर्षा की प्रक्रिया और बिजली की गतिविधियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उनके अध्ययन में यह भी पाया गया कि अधिक एरोसोल सांद्रता से वर्षा में विलंब और स्थानीय आंधी-तूफान की तीव्रता में वृद्धि होती है। डॉ. जितेंद्र बुटोला ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन के गहन प्रभावों और उनके समाधान पर चर्चा की। बताया कि जलवायु परिवर्तन न केवल पर्यावरण को बल्कि मानव स्वास्थ्य, कृषि और जैव विविधता को भी प्रभावित कर रहा है। उन्होंने ‘क्लाइमेट-स्मार्ट फॉरेस्ट्री को भविष्य की आवश्यकता बताते हुए कहा कि यह वनों की उत्पादकता, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों की आजीविका के बीच संतुलन स्थापित कर सकती है। सत्र में डॉ. विक्रम एस नेगी, डॉ. विजयलक्ष्मी त्रिवेदी ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। मौके पर प्रो. एमएस नेगी, प्रो. आरएस नेगी, डॉ. मनीष निगम, डॉ. विजयकांत पुरोहित, डॉ. कपिल पंवार, डॉ. नेहा आदि मौजूद थे। (एजेंसी)

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