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बिहार में जाति जनगणना पर केंद्र का हलफनामा, बताया- राज्य को जनगणना का अधिकार ही नहीं

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पटना, एजेंसी। जातीय गणना को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में आज फिर से सुनवाई हुई। जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दिया है। इसमें सरकार ने कहा है कि जनगणना का अधिकार राज्यों के पास नहीं है। इससे पहले 21 अगस्त को सुनवाई हुई थी। इसमें जातीय गणना पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकओं पर कोर्ट ने सुनवाई की थी। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस भट्टी की अदालत से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसमें 7 दिन का समय मांगा था। इसके बाद 28 अगस्त की तारीख दे दी।
इससे पहले कोर्ट में बिहार सरकार ने दलील देते हुए कहा कि राज्य में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। सारे डाटा भी ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से डाटा रिलीज करवाने की मांग की थी। अब कोर्ट इस मामले को सोमवार को फिर सुनवाई करेगी।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, गैर सरकारी संगठन (ठॅड) “एक सोच एक प्रयास की” ओर से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर कोर्ट सुनवाई करेगी। ठॅड के अलावा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। बिहार के नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से दायर याचिका में दलील दी गई कि जातिगत जनगणना कराने के लिए राज्य सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, केवल केंद्र सरकार को ही जनगणना कराने का अधिकार है।
दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। इसके बाद एक अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी। पटना हाईकोर्ट ने इसे सर्वे की तरह कराने की मंजूरी दे थी। इसके बाद बिहार सरकार ने बचे हुए इलाकों में गणना का कार्य फिर से शुरू करवा दिया। बिहार सरकार के अनुसार, जाति आधारित गणना का कार्य पूरा हो गया है।

 

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