सीआरपीसी की धारा 437-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती, आय से अधिक संपत्ति केस में पोनमुडी को झटका
नई दिल्ली , एजेंसी। आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मंत्री के पोनमुडी को राहत देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने पोनमुडी के खिलाफ पुनरीक्षण मामले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने द्रमुक मंत्री के पोनमुडी और उनकी पत्नी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में वेल्लोर ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था। इसके बाद शुरू किये गये आपराधिक पुनरीक्षण मामले पर हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया था।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने मामले का स्वत: संज्ञान लेने के लिए तमिलनाडु उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश की प्रशंसा भी की। पीठ में में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा, “भगवान का शुक्र है, हमारे पास न्यायमूर्ति आनंद जैसे न्यायाधीश हैं। आचरण को देखो। मुख्य न्यायाधीश मुकदमे को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित करते हैं। प्रशासनिक पक्ष में मुकदमे को एक जिला न्यायाधीश से दूसरे जिला न्यायाधीश में स्थानांतरित करने की मुख्य न्यायाधीश की शक्ति कहां है? मुकदमे को दूसरे जज की अदालत में भेजने के लिए न्यायिक आदेश होना चाहिए। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने इस मामले की जांच का आदेश देकर ठीक किया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश के पास अभी भी मामला है और आय से अधिक संपत्ति मामले में अभी सभी पक्षों को केवल नोटिस जारी किया गया है। इसलिए, वह इस स्तर पर याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं है। शीर्ष अदालत ने आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी की दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया।
सीजेआई की अदालत ने और कहा कि सभी दलीलें हाईकोर्ट में एकल न्यायाधीश के समक्ष दी जा सकती हैं, जिन्होंने मंत्री और उनकी पत्नी को बरी करने पर सरकारी वकील को नोटिस जारी किया है। बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने 10 अगस्त को पोनमुडी और उनकी पत्नी को नोटिस देने का आदेश दिया था। गौरतलब है कि पोनमुडी को हाल ही में निचली अदालत ने जमीन हड़पने के मामले में बरी कर दिया था। वह कथित अवैध रेत खनन से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रडार पर भी हैं।
उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी का बचाव करने के लिए सोमवार को उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ वकील के रूप में पेश हुए। शीर्ष अदालत ने 16 अक्तूबर को न्यायाधीशों की पूर्ण अदालत के फैसले के बाद न्यायमूर्ति मुरलीधर को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया है। जस्टिस मुरलीधर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत में पेश हुए। सीजेआई ने मजाकिया अंदाज में कहा, ”मैं भाई मुरलीधर नहीं कह सकता, लेकिन अब मैं मिस्टर मुरलीधर कहूंगा।” मामला मद्रास उच्च न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणियों से संबंधित है, जिसमें अदालत ने रिटायर्ड न्यायिक अधिकारी पर सख्त टिप्पणी की थी। मुरलीधर ने कहा कि उनके मुवक्किल का रिकॉर्ड बेदाग रहा है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 220 के तहत, उच्च न्यायालय का एक पूर्व न्यायाधीश केवल उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों में ही वकील के रूप में पैरवी कर सकता है जहां उन्होंने न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं किया हो। बता दें कि न्यायमूर्ति मुरलीधर 7 अगस्त को उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। कार्यवाही के बाद जस्टिस मुरलीधर की वरिष्ठता के सम्मान में शीर्ष अदालत ने कहा, वह चाहे किसी भी पक्ष के लिए पेश हों, न्यायपालिका के लिए वह एक संपत्ति हैं।
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के दो अस्थायी सदस्यों की सूची बनाने और उनकी नियुक्ति के लिए सोमवार को तीन सदस्यीय चयन पैनल का गठन किया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि चयन समिति में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान प्रोटेम डीईआरसी प्रमुख- न्यायमूर्ति जयंत नाथ, एपीटीईएल (बिजली के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आशा मेनन शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट पैनल तय करेगा चयन का तरीका
पीठ ने साफ किया कि चयन पैनल प्रत्येक पद के लिए अधिकारियों की क्षमता, निष्ठा और डोमेन ज्ञान के संबंध में जानकारी के साथ दो नामों की सिफारिश करेगा। सिफारिश एक महीने के भीतर की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम नियुक्ति के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के कार्यालय को भेजे जाएंगे। पैनल राष्ट्रीय राजधानी के बिजली नियामक प्राधिकरण के सदस्यों के चयन के लिए तरीके तैयार करने के लिए स्वतंत्र होगा।
उच्चतम न्यायालय में एक आपराधिक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कानूनी प्रावधानों के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस दिया है। दरअसल, इस कानून के तहत अदालत से बरी हो चुके लोगों को भी जमानत बॉन्ड भरने और रिहाई के लिए जमानत राशि जमा करने की जरूरत पड़ती है।