कांग्रेस में असंतोष खत्म करने सोनिया गांधी ने संभाला मोर्चा, असंतुष्ट गुट अपने सवालों पर कायम
नई दिल्ली। कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव से पहले पार्टी में जारी जबर्दस्त अंदरूनी उठापटक का हल निकालने के लिए पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ही नहीं, खुद सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी मोर्चा संभाल रखा है। पार्टी के चाणक्य रहे अहमद पटेल के असमय निधन के तत्काल बाद सोनिया और प्रियंका ने खुद अपने स्तर पर वरिष्ठ असंतुष्ट नेताओं के साथ सीधी बातचीत का चौनल शुरू किया। कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले सोनिया गांधी की असंतुष्ट गुट समेत वरिष्ठ नेताओं के साथ शनिवार को हो रही बैठक में इस सीधी पहल की अहम भूमिका है।
पार्टी के मौजूदा अंदरूनी संकट के समाधान के लिए असंतुष्ट जी-23 गुट के नेताओं को सीधे संवाद की राह पर लाने में कांग्रेस नेतृत्व जहां सफल रहा है, वहीं असंतुष्ट गुट का कांग्रेस की कमजोर होती हालत और नेतृत्व की कार्यशैली पर उठाए सवालों पर कायम रहना परेशानी का सबब बना हुआ है। जी-23 गुट का रुख ऐसा ही रहा तो कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में खेमेबंदी खुले तौर पर दिखाई देगी। इसके मद्देनजर ही हाईकमान ने सीधे संवाद का चौनल खोलना मुनासिब समझा।
असंतुष्ट गुट के सूत्रों के अनुसार, यह सही है कि उनके उठाए सवालों पर कमल नाथ और पी़ चिदंबरम हाईकमान के साथ साथ उन लोगों से भी लगातार चर्चा कर रहे थे। इस बीच अहमद पटेल का देहांत हो गया जिसके बाद पार्टी नेतृत्व में अंदरूनी घमासान थामने को लेकर हड़बड़ाहट की झलक के साथ तेजी भी दिखी। असंतुष्ट खेमे के भरोसेमंद सूत्र ने बताया कि बीते दो हफ्तों के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी की गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा से फोन पर एक से अधिक बार सीधी बातचीत हुई है। यह बातचीत विवादित पत्र में उठाए सवालों को लेकर हुई। सूत्र ने यह भी कहा कि बेशक आजाद और शर्मा का सोनिया के साथ शिष्टाचार संवाद पत्र विवाद के बाद कभी बंद नहीं हुआ था, मगर यह भी हकीकत है कि पत्र सामने आने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की अगस्त में हुई हंगामेदार बैठक के बाद असंतुष्टों की नेतृत्व से इस मुद्दे पर कोई सीधी बात नहीं हुई थी। सोनिया और प्रियंका की ओर से पिछले कुछ दिनों में फोन पर की गई पहल ने संवाद के इस गतिरोध को तोड़ा है।
असंतुष्ट गुट के एक नेता ने सोनिया के साथ अपने कुछ नेताओं की शनिवार को सीधी बातचीत की पुष्टि करते हुए कहा कि संवाद तो ठीक है मगर असल मुद्दा उनके उठाए सवालों का रास्ता निकालना है। अगस्त की शुरुआत में सोनिया को लिखे पत्र में जिन सवालों और चिंताओं को उठाया गया था, वे सही साबित हुईं। बिहार चुनाव में पार्टी की शिकस्त हुई, उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में दो फीसद से भी कम वोट मिले, हैदराबाद के निगम चुनाव, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद चुनाव और यहां तक कि केरल के स्थानीय चुनाव में कांग्रेस की हार हमारे उठाए सवालों को सही साबित कर रही है। पत्र में हमने कांग्रेस की कमजोर होती हालत और सुधार के लिए बहुत सोच-समझकर बातें उठाई थीं। इसीलिए संवाद में यह अहम होगा कि केवल इन मुद्दों पर बातचीत भर न हो, बल्कि सुधार के लिए कदम उठाए जाएं और इसके लिए तंत्र बनाने के हमारे सुझावों पर अमल हो।