उत्तराखंड

महाधिवक्ता की राय आने के बाद कांग्रेस ने स्पीकरातु खंडूडी को घेरा

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देहरादून। विधानसभा में वर्ष 2016 से पहले के कर्मचारियों के मामले में महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर की विधिक राय आने के बाद कांग्रेस ने स्पीकरातु खंडूडी पर चौतरफा हमला बोल दिया है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने महाधिवक्ता की रिपोर्ट को 15 दिन से दबा कर रखने पर सवाल उठाए। कहा कि अब स्पीकर क्यों तत्काल कार्रवाई नहीं कर रही हैं। ये सीधे तौर पर 2016 से पहले के कर्मचारियों को बचाने का प्रयास है।
यमुना कालोनी स्थित आवास पर मीडिया से बातचीत में प्रीतम सिंह ने कहा कि विधिक राय आने के बाद स्पीकर का स्वयं ही तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी। क्योंकि हाईकोर्ट में सिंगल और डबल बेंच में विधानसभा ने स्वयं शपथ पत्र दिया है कि कार्रवाई के लिए विधिक राय मांगी गई है। अब जब राय आ चुकी है और महाधिवक्ता कह चुके हैं कि नियमितीकरण किसी भी तरह वैध नहीं है। न ही डीके कोटिया समिति ने इन्हें वैध बताया है।
कहा कि अवैध रूप से भर्ती कोई भी व्यक्ति यदि वो नियमित भी हो जाए, तो भी उसकी नियुक्ति को वैध नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में किसी भी तरह की विधिक राय की भी जरूरत नहीं थी। 2016 के बाद वाले कर्मचारियों को भी सरकार की बजाय स्पीकर ने हटाया था। जब तदर्थ कर्मचारियों को हटाने के लिए विधिक राय नहीं ली गई, तो नियमित कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई को विधिक राय के नाम पर क्यों टाला जा रहा है। इससे साफ हो गया है कि कुछ लोगों को बचाने का जो शुरू से प्रयास किया जा रहा है, वो अभी भी जारी है।
विधिक राय की सरकार को ही जानकारी नहीं
प्रीतम सिंह ने कहा कि महाधिवक्ता नौ जनवरी को ही अपनी राय विधानसभा को दे चुके हैं। स्पीकर अभी भी कह रही हैं कि सरकार से राय मांगी जा रही हैं। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी 19 जनवरी को महाधिवक्ता को पत्र भेज रही हैं कि जल्द रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को दी जाए। इससे साफ है कि कहीं कोई समन्वय नहीं है।
विधानसभा ने खड़ी कर दी है हास्यास्पद स्थितिरू हरदा
पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि विधानसभा भर्ती मामले में विधानसभा ने हास्यास्पद स्थिति खड़ी कर दी है। कैसे एक ही तरह की भर्ती के मामले में दोहरे मापदंड हो सकते हैं। अब महाधिवक्ता ने भी अपनी राय में साफ कर दिया है कि किसी भी नियमितीकरण को वैध नहीं ठहराया जा सकता। वैसे भी विधानसभा की भर्ती का मामला किसी भी तरह विधिक ही नहीं है, बल्कि ये नैतिकता का मामला है। सभी से सामूहिक गलतियां हुई हैं। ऐसे में इसका समाधान भी सामूहिक तरीके से ही होगा। बेहतर हो कि इस मामले में एक सर्वदलीय बैठक बुला कर एक फैसला लिया जाए। नहीं तो ये मामला विधानसभा के गले की फांस बनने जा रहा है।

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