संपादकीय

एक तरफा फैसलों पर लगाम

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देश में नई सरकार और विपक्ष के बीच अब अपनी ताकत दिखाने का क्रम शुरू हो गया है। देश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब लोकसभा अध्यक्ष के लिए वोटिंग कराई जाएगी। भाजपा के लिए यह स्थिति बेहद अप्रत्याशित है क्योंकि इससे पूर्व सत्ता पक्ष के व्यक्ति का स्पीकर के पद पर आसानी से मनोनयन किया गया है लेकिन इस बार सदन में स्थित कुछ अलग होगी। लोकसभा स्पीकर पद के लिए सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी गठबंधन के बीच सहमति नहीं बन पाई है और अब स्पीकर पद को लेकर चुनाव होगा। ओम बिरला एनडीए तो के. सुरेश विपक्षी गठबंधन की तरफ से लोकसभा अध्यक्ष पद के उम्मीदवार होंगे। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दूसरी बार होगा, जब स्पीकर पद के लिए चुनाव होगा। एक लंबे समय बाद विपक्ष सुंदर के अंदर थोड़ा मजबूत होता हुआ नजर आने लगा है हालांकि कांग्रेस की जल्दबाजी भी माना जा रहा है लेकिन कहीं ना कहीं या भविष्य के भी संकेत है कि सरकार के लिए बड़े फैसले लेना आसान नहीं होगा। इंडिया गठबंधन ने भी अपना उम्मीदवार इस पद के लिए उतारा है हालांकि गठबंधन के अंदर ही दो फाड़ भी नजर आया है जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूमिका चर्चा में है। गठबंधन में होने के बावजूद ममता बनर्जी ने के सुरेश के नाम पर सहमति नहीं जताई है तो उधर कांग्रेस ने अपने सभी सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है। भाजपा की ओर से कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राजनाथ सिंह की ओर से फोन पर वार्ता करते हुए ओम बिरला को समर्थन देने की बात कही गई थी लेकिन यहीं कांग्रेस ने भी दांव खेला और कहा कि वह इस शर्त पर राजी है की केरल से आठवीं बार जीत कर आए के. सुरेश को डिप्टी स्पीकर के लिए वह अपनी सहमति प्रदान करें। कांग्रेस का यह दांव एनडीए के लिए काफी अचंभित करने वाला रहा और अभी तक इस विषय में एनडीए की ओर से कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की गई है। हालांकि ओम बिरला के स्पीकर बनने में कोई अधिक दिक्कत नहीं है क्योंकि पहले ही सदन में एनडीए अपनी संख्या बल पूरा कर रहा है लेकिन विपक्ष का यह मास्टर स्ट्रीम भविष्य के कई आने वाले फैसलों पर भी निश्चित तौर पर असर डालेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि आने वाले समय में कुछ बड़े फैसले लेने वाले हैं लेकिन उनके लिए यह राह इतनी आसान नहीं होगी क्योंकि जहां एक तरफ उनकी सरकार भी समर्थन के बल पर चल रही है तो वहीं विपक्ष को नजरअंदाज करना भी आसान नहीं होगा। वही इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गई है और कांग्रेस ने कहा है कि सरकार विपक्ष को कोई पद ही नहीं देना चाहती। दांव खेलने के बावजूद यहां इंडिया गठबंधन के लिए एक मुसीबत ममता बनर्जी को लेकर भी खड़ी हुई है जिन्होंने अपनी पार्टी को इससे अलग कर लिया है और कहा है कि के. सुरेश का नाम उनसे सुझाव लेकर नहीं लिया गया। साफ है कि बिना ममता बनर्जी के सहयोग के इंडिया गठबंधन को विपक्ष की भूमिका का मजबूती के साथ निर्वहन करने में कुछ परेशानियां पैदा हो सकती हैं। ओम बिरला के लोकसभा अध्यक्ष बनने में अधिक दिक्कतें नहीं है लेकिन यहां सरकार के लिए भविष्य का एक संकेत जरूर खड़ा हो गया है कि पिछले 10 वर्ष की भांति आगे के 5 वर्ष बड़े फैसले लेने में सरकार को कांटो भरी राह पर चलना होगा।

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