ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक सेहत पर भारी पड़ने लगा कोरोना, कई प्रोजेक्ट ठप होने से नगदी का प्रवाह हुआ बाधित

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नई दिल्ली, एजेंसी। कोरोना संक्रमण के चलते लागू लाकडाउन से शहरी आर्थिक गतिविधियां तो बुरी तरह प्रभावित हो ही रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अटूता नहीं है। कोविड-19 के संक्रमण की दूसरी लहर का प्रसार तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो रहा है, जिससे इन क्षेत्रों की आर्थिक सेहत बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था हालांकि षि आधारित मानी जाती है, लेकिन उससे अधिक दारोमदार गैर षि संसाधनों पर निर्भर है।
कोविड-19 की दूसरी लहर का कहर गांवों में ज्यादा दिख रहा है। इससे होने वाली अकाल मौतों से ग्रामीण क्षेत्रों में भय का जबर्दस्त माहौल है। इसका सीधा असर वहां की षि के साथ अन्य आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। परंपरगत खेती में गेहूं व चावल जैसे अनाज वाली फसलों को छोड़कर बाकी उपज की हालत अच्छी नहीं है। लाकडाउन की वजह से इसके लिए बाजार उपलब्ध नहीं है।
होटल, रेस्तरां, खानपान और मिठाई की दुकानें तो लंबे समय से बंद हैं। शहरी क्षेत्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी शादी-विवाह और अन्य आयोजन बंद कर दिए गए हैं। इनमें उपयोग होने वाली सब्जियों, स्थानीय फलों, दूध और अन्य उपज की मांग में जबर्दस्त कमी आई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन व छोटे किसानों की रोजी-रोटी का आधार डेयरी व सब्जियों की खेती होती है। कोरोना की दूसरी लहर में ऐसे किसानों की हालत पस्त हो गई है। दूध की खपत मात्र 40 फीसद ही संगठित क्षेत्र की निजी, सहकारी व सरकारी कंपनियों में होती है। बाकी 60 फीसद दूध की बिक्री मिठाई, होटल और चाय की दुकानों पर होती है। कई कंपनियों का दूध कलेक्शन भी घटा है। जबकि दूध उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है।
टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस के प्रोफेसर अश्विनी कुमार का कहना है कि कोरोना की वजह से रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स लगभग ठप हो चुके हैं। इससे नगदी का प्रवाह बाधित हुआ है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मुश्किल से 40 फीसद हिस्सा खेती से आता है, जबकि बाकी गैर षि कार्यों से। अश्विनी कहते हैं कि इस बार युवाओं का गांवों की ओर पलायन नहीं हुआ है, जैसा पिछली बार हुआ था। शहरों में उनकी आमदनी ठप है, जिससे उनके लिए अपने परिवार वालों को पैसा भेजना संभव नहीं हो पा रहा है।
ग्रामीण सामाजिक अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ निलय रंजन का कहना है कि अप्रैल से जून तक गांव के लोगों के पास खेती का कोई काम नहीं होता है। ऐसे समय में ही रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाएं उनकी रोजी-रोटी के लिए मुफीद होती हैं। लेकिन इस बार कोरोना के चलते ग्रामीण सड़क, आवासीय,ोसचाई की परियोजनाएं, ग्रामीण विद्युतीकरण और जल संसाधन की परियोजनाएं लगभग ठप हो चुकी हैं। गांवों में सिर्फ मनरेगा का कच्चा काम ही हो रहा है। बाकी परियोजनाओं के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

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