– मेडिकल बिल से लेकर सरकारी गाड़ियों की सर्विस तक – बिना कमीशन कोई काम नहीं
देहरादून। उत्तराखंड में भ्रष्टाचार अब ऐसी जड़ें जमा चुका है कि आम जनता ही नहीं, सरकारी कर्मचारी भी इस तंत्र की चपेट में हैं। राज्य का प्रशासनिक ढांचा आज “कमिशन कल्चर” की गिरफ्त में दिखाई दे रहा है, जहां बिना कमीशन के कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती। राज्य के कई विभागों में कर्मचारी खुलकर यह स्वीकार कर रहे हैं कि किसी भी सरकारी कार्य में अब रिश्वत या कमीशन देना “सिस्टम का हिस्सा” बन चुका है। यदि कोई कर्मचारी अपने मेडिकल बिल का क्लेम करता है, तो फाइल पास कराने के लिए कमीशन मांगा जाता है। इसी तरह किसी योजना या सरकारी फंड के आवेदन पर भी बिना हिस्सा दिए काम नहीं होता। यहां तक कि विभागीय कर्मियों के टीए-डीए क्लेम में भी कमीशन तय है। हैरानी की बात तो यह है कि सरकारी वाहनों की सर्विसिंग तक में ड्राइवरों से कमीशन वसूला जा रहा है। यानी हर छोटा बड़ा कार्य- बिना “कट” के काम नहीं बनता।
सूत्रों के अनुसार, कई विभागों में कमीशन की दरें तक फिक्स कर दी गई हैं। ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा सिस्टम इस भ्रष्टाचार की श्रृंखला से बंधा हुआ है। निचले स्तर के कर्मचारी से लेकर उच्च पदों तक यह प्रवृत्ति आम हो चुकी है, जिससे न केवल कार्य संस्कृति प्रभावित हो रही है, बल्कि राज्य की विकास योजनाओं की गति भी थम रही है।
जनता में बढ़ रहा आक्रोश: राज्यभर में आम जनता इस स्थिति से आक्रोशित है। लोग कहते हैं कि जब सरकारी कर्मचारी ही अपनी सुविधा पाने के लिए कमीशन देने को मजबूर हैं, तो आम जनता से निष्पक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है। कई सामाजिक संगठनों ने इस बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ सीबीआई जांच या विजिलेंस की सख्त कार्रवाई की मांग की है।
भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चे के एक सदस्य ने कहा, “आज उत्तराखंड में ईमानदार व्यक्ति अपने अधिकार का भी उपयोग नहीं कर पा रहा है। जो कमीशन नहीं देता, उसकी फाइलें महीनों दबाकर रख दी जाती हैं। यह राज्य के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति है।”
आवश्यक है सख्त कार्यवाही: प्रशासनिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राज्य सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह “कमीशन राज” विकास की जड़ें खोखली कर देगा। इसके लिए पारदर्शी प्रणाली, डिजिटल ट्रैकिंग और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी, ताकि किसी भी स्तर पर रिश्वतखोरी को रोका जा सके।