वन गुर्जरों से जुड़े आदेशों का पालन न होने पर कोर्ट नाराज
नैनीताल। हाईकोर्ट ने बुधवार को प्रदेश के वन गुर्जरों के संरक्षण तथा विस्थापन को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। पूर्व के आदेशों का अनुपालन नहीं होने पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की। अगली सुनवाई के लिए दो मार्च की तिथि तय की है। सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ में हुई। एनजीओ थिंक एक्ट राइजिंग फाउंडेशन तथा हिमालयन युवा ग्रामीण व अन्य की ओर से जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कहा गया है कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक-हकूकों से वंचित कर रही है। वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं और उन्हें हटाया जा रहा है। पूर्व में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि वन गुर्जरों के मामले में दुबारा से कमेटी का गठन करें। इसमें अन्य सक्षम अधिकारियों को भी कमेटी का हिस्सा बनाया जाए, जिन्हें वन गुर्जरों के रहन-सहन आदि की जानकारी हो, ताकि कोर्ट को उनकी समस्याओं का पता चल सके। जबकि सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि कोर्ट के आदेश पर नई कमेटी गठित कर दी गई है। याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन के लिए जो कमेटी गठित की है, उसकी रिपोर्ट पर सरकार अमल नहीं कर रही है। कोर्ट ने वन गुर्जरों को दस लाख का मुआवजा देने को कहा था, लेकिन सरकार ने आधे परिवारों को दिया और आधों को नहीं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन के लिए जो नियमावली बनाई है, वह भ्रमित करने वाली है। मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था तक नहीं की गई है। पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया है। विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। शीघ्र ही इन लोगों को मालिकाना हक संबंधी प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है।
इन आदेशों का नहीं हुआ अनुपालन
– सोना नदी क्षेत्र में टूटे हुए 24 वन गुर्जरों को 10 लाख रुपये तीन माह के भीतर देना।
– सोना नदी क्षेत्र के 24 टूटे हुए वन गुर्जरों के परिवारों को छह माह के भीतर भूमि देना।
– वन गुर्जरों के सभी परिवारों को जमीन का मालिकाना हक संबंधी प्रमाणपत्र देना।
-राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवन यापन के लिए सभी जरूरी मूलभूत सुविधाएं देना।
– राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन के लिए सरकार द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करना।