कोर्ट ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की गिरफ्तारी के दावे को खारिज किया

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-मालेगांव ब्लास्ट केस
मुंबई,मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने आज 2 अगस्त को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में 7 आरोपियों को बरी करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की. न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने अपने फैसले में साफ कहा कि पूर्व एटीएस अधिकारी महबूब मुजावर द्वारा किया गया यह दावा कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था, पूरी तरह बेबुनियाद और असत्य है.
1,000 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में न्यायाधीश ने कहा कि बचाव पक्ष की ओर से पेश किए गए तर्कों और मुजावर के बयानों में कोई कानूनी मजबूती नहीं है. अदालत ने माना कि तत्कालीन जांच अधिकारी एसीपी मोहन कुलकर्णी के बयान के अनुसार, मुजावर को केवल दो फरार आरोपियों – रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे – की तलाश के लिए भेजा गया था, न कि मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए.
कोर्ट ने इशारों में यह भी स्पष्ट किया कि यह बयान शायद भगवा आतंकवाद की एक खास छवि बनाने के प्रयास के तहत दिया गया था, लेकिन यह न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. मुजावर ने अदालत में दोहराया था कि उन पर राजनीतिक दबाव था, लेकिन अदालत ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित दावों को बिना प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जा सकता.
इस केस में 7 लोगों को करीब 17 वर्षों तक आरोपों का सामना करना पड़ा, जिनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, ले. कर्नल पुरोहित जैसे नाम शामिल थे. अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया. यह फैसले उन लोगों के लिए कानूनी और सामाजिक राहत लेकर आया है, जिनकी छवि सालों से इस केस में धूमिल की गई थी.
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक भीड़भाड़ वाले इलाके में बम विस्फोट हुआ, जिसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हो गए. जांच पहले महाराष्ट्र एटीएस ने की, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित जैसे हिंदू संगठन से जुड़े लोगों के नाम सामने आए. बाद में केस एनआईए को सौंपा गया. यह मामला बहस का केंद्र बना. 17 वर्षों तक चला यह केस अंतत: 2025 को खत्म हुआ, जब विशेष अदालत ने सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.

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