नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दो दशक से चले आ रहे दिलचस्प केस में मंगलवार को अहम फैसला सुनाया है। मामला एक 23 साल के युवक से जुड़ा है, जिसने अदालत से कहा था कि वह अपनी मां के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से पैदा हुई संतान है। युवक ने कोर्ट से अपील की थी कि वह उसके बायोलॉजिकल पिता का डीएनए टेस्ट करवाने का आदेश दे। युवक का कहना था कि वह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है और कई बार सर्जरी करा चुका है। उसने अपने बायोलॉजिकल पिता से गुजारे भत्ते की मांग की थी।
2001 में हुआ था जन्म
दरअसल एक महिला की शादी 1989 में हुई थी। 1991 में उसे एक बेटी हुई। इसके बाद 2001 में उसने एक बेटे को जन्म दिया। 2003 में महिला अपने पति से अलग रहने लगी और 2006 में उनका तलाक हो गया। इसके बाद महिला ने नगर निगम में अपने बेटे के बर्थ रिकॉर्ड में पिता का नाम बदलवाने की कोशिश की। महिला ने दावा किया कि वह एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप में थी और उसका बेटा इसी अफेयर से पैदा हुआ। हालांकि अधिकारियों ने बर्ड रिकॉर्ड में बदलाव के लिए कोर्ट के ऑर्डर की मांग की। इसके बाद मामला कोर्ट में पहुंचा।
हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
2007 में लोकल कोर्ट ने कथित बायोलॉजिकल पिता का डीएनए टेस्ट कराने के आदेश दिए। लेकिन इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई और 2008 में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने कहा कि पैटरनिटी टेस्ट का आदेश तभी दिया जा सकता है, जब ये साबित हो जाए कि पति-पत्नी के बीच संपर्क नहीं था। युवक की दलील थी कि उसे कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और उसके पास अब सर्जरी के लिए पैसे नहीं बचे हैं। इसलिए उसने अपने बायोलॉजिकल पिता से गुजारे भत्ते की मांग की थी। युवक ने कहा कि उसे अपने लीगल पिता से कोई भी मेटेंनेंस नहीं मिल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई मांग
सुप्रीम कोर्ट ने युवक और उसकी मां की याचिका ठुकरा दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘जब बेटे का जन्म हुआ, तब महिला अपने पति के साथ रह रही थी। ये फैक्ट है कि वे 1989 से 2003 तक एक ही छत के नीचे रह रहे थे और तब तक शादी की वैधानिकता पर कोई सवाल नहीं उठा था।’