हाईटेक तकनीक और मशीनों के बावजूद जिंदगी की तलाश में हाथ खाली

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देहरादून। धराली में राहत एवं बचाव कार्यों में तमाम हाईटेक तकनीक की मशीनें इस्तेमाल हो रही हैं। आपदा के बाद के 72 घंटे काफी अहम थे, लेकिन 12 दिन बाद भी तमाम हाईटेक तकनीक और मशीनों के बावजूद जिंदगी की तलाश में हाथ खाली हैं। धराली में 35 से 40 फुट तक जमा हजारों टन मलबे का ढेर आधुनिक तकनीक की मशीनों के सामने आड़े आ रहा है। यहां जो होटल, मकान खीरगंगा की बाढ़ में धराशायी हुए वह उनका मलबा भी अपने स्थान से कई फुट आगे भागीरथी की ओर बढ़ गया। साथ ही पांच अगस्त की दोपहर में आई आपदा के बाद भी खीरगंगा से लगातार मलबा आता रहा, जिसने मशीनों पर टिकी उम्मीदों को तोड़ने का काम किया। लाइव डिटेक्टर राहत बचाव टीमों ने छह अगस्त को धराली में लाइव डिटेक्टर की सहायता से जिंदगी की तलाश शुरू की। लेकिन एक निश्चित गहराई तक जिंदगी की तलाश करने वाला यह उपकरण भी हजारों टन मलबे के ढेर जिंदगी की पहचान करने में कामयाब नहीं हो पाया। विक्टिम लोकेटिंग कैमरा थर्मल इमेजिंग और ध्वनि की सहायता से मलबे में दबे लोगों को ढूंढने में मदद करने वाला विक्टिम लोकेटिंग कैमरे से भी बचाव टीमों को ऐसी स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई। क्योंकि इसे किसी ध्वस्त हुए ढांचे या फिर पानी के अंदर कैमरे से स्कैनिंग किया जाता है, लेकिन धराली के मलबे में इस तरह की स्थितियां बची नहीं हैं। ग्राउंड पेनेट्रेटटिंग राडार ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उपयोग कर जमीन के नीचे की संरचनाओं का पता की जाती है, लेकिन धराली में जमा मलबा दलदली होना और मलबे के नीचे पानी के कई चैनल होने की वजह से ये राडार भी जिंदगी बचाने में कारगर साबित नहीं हो पाए हैं। थर्मल इमेजिंग कैमरा धराली में थर्मल इमेजिंग कैमरे काफी कारगर हो सकते थे, क्योंकि यह मलबे से निकलने वाली ऊर्जा के आधार पर लोकेशन को सटीक तरीके से बता देता है, लेकिन इन कैमरों के सामने भी मलब के साथ लगातार बह रहा पानी सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आया। ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार इन रेस्क्यू राडार का भी धराली में उपयोग किया जा रहा है। रेडियो तरंगों के आधार पर मलबे में दबे लोगों का पता लगा सकते थे, लेकिन बड़े-बड़े बोल्डर और प्रभावित क्षेत्र में दलदल होने की वजह इससे भी कोई कामयाबी नहीं मिल पाई। एक्सो थर्मल कटिंग एक्सोथर्मिक कटिंग से मलबे में दबे ढांचे को कटाने और खोदने में की जाती है। इसका उपयोग धराली में भी किया जा रहा है। लेकिन अभी तक कोई भी ऐसा ढांचा यहां नहीं मिल पाया है, जहां आपदा में लापता लोग दबे होने का कोई अनुमान हो।

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