नशे पर लगाम कसना मुश्किल

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लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पूरे प्रदेश में सुरक्षा के चाक चौबंद प्रबंध किए गए थे जिसके तहत न केवल अवैध धन की आवाजाही बल्कि नशे को रोकने के लिए भी खास व्यवस्था बनाकर कार्य किया जा रहा था। हालांकि पूरे चुनाव के दौरान न केवल अवैध शराब का कारोबार चलता रहा बल्कि नशे के सौदागर भी प्रदेश भर में अपनी हरकतों से पुलिस को दौड़ाते रहे। पिछले कुछ दिनों में उत्तराखंड एसटीएफ तथा देहरादून जनपद पुलिस समेत उत्तरकाशी एवं नैनीताल पुलिस ने भी कई ड्रग तस्करों को पकड़कर सलाखों के पीछे पहुंचाया, हालांकि इन लोगों के पकड़े जाने के बावजूद भी नशे की तस्करी में लगाम लग पाई हो ऐसा भी कभी नजर नहीं आया। चौंकाने वाली बात तो यह है कि एसटीएफ द्वारा कुछ ऐसे भी मामले पकड़े गए जिनमें न केवल भारी मात्रा में मादक पदार्थ पकड़े गए बल्कि उनकी कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कई लाख रुपए में आंकी गई। एक सवाल यहां खड़ा होता है कि आखिर उत्तराखंड और खास तौर से देहरादून में एक नशे की तस्करी का कारोबार क्यों बढ़ने लगा है? प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद नशा मुक्त उत्तराखंड मिशन को लेकर गंभीर हैं जिसके लिए न केवल नारकोटिक्स विभाग बल्कि उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक को भी नशा रोकने को लेकर खड़े निर्देश जारी किए गए हैं। पुलिस की अलग-अलग टीमों द्वारा कई बड़ी खेप पकड़ी गई लेकिन नशे का कारोबार आज भी बदस्तूर चल रहा है, जिसका एक बड़ा सॉफ्ट टारगेट प्रदेश के शैक्षिक संस्थान है। शायद राजधानी देहरादून में तस्करी की बड़ी सप्लाई का एक कारण यह भी है कि यहां राज्य बनने के बाद कुकुरमुत्तों की तरह शैक्षिक संस्थानों में बाहरी छात्रों की संख्या में बेहद बढ़ोतरी देखी गई और कहीं ना कहीं इनमें कई छात्रों में नशे की प्रवृत्ति भी देखने को मिली है। उत्तराखंड में नशे के तौर पर शराब जरूर सर चढ़कर बोलता आई है लेकिन इंजेक्शन, टैबलेट, पाउडर और दूसरे रूप में लिया जाने वाला नशा राज्य बनने के बाद ही बहुतायत में देखने को मिला है। एक लंबे समय से राज्य पुलिस भी यह जानती आई है कि उत्तराखंड में अधिकांश तौर पर नशे के सामग्री की आपूर्ति बरेली से की जाती है लेकिन इधर पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश के दूसरे जनपदों से भी शराब और नशे के तस्कर उत्तराखंड को नशे की कारोबार के लिए मुफीद जगह मानने लगे हैं। नशे के कारोबार पर पूर्ण रूप से लगाम कसने संभव नहीं है लेकिन यह जरूर संभव है कि उत्तराखंड पुलिस द्वारा नशे को रोकने के लिए बनाई गई पुलिस टीमें तस्करों के सरगनाओ तक पहुंचाने की कोशिश करें ताकि चोट ऐसी जगह की जाए जहां से उसका असर दिखाई दे। अन्यथा छोटे-मोटे तस्करों को पकड़कर यह कारोबार थम जाएगा इस भ्रम से सुरक्षा एजेंसी को बाहर निकलना ही होगा।

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