देहरादून। उत्तराखंड में आपदा का असर पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर दिख रहा है। आपदा के भय से लोग घरों से निकलने में परहेज कर रहे हैं, जरूरी होने पर ही यात्रा कर रहे हैं। पर्वतीय रूटों के साथ ही मैदानी रूटों की बसों में भी यात्री कम हो गए हैं। रोडवेज की बसों में 40 फीसदी तक यात्री घट गए हैं। उत्तराखंड में लगातार आपदाएं आ रही हैं। रोज पहाड़ दरक रहे हैं। सड़कें बंद हो रही हैं। ऐसे में सफर करना खतरे से खाली नहीं है। इसका सीधा असर पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर दिख रहा है। रोडवेज की बस सेवाओं में 40 फीसदी तक यात्री कम हो गए हैं। सड़कें बंद होने से पर्वतीय क्षेत्रों की अधिकांश बसों के पहिए जाम हैं, जो बसें चल रही हैं, उनमें भी बहुत कम यात्री सफर कर रहे हैं। दिल्ली जैसे प्राइम रूट पर भी रोडवेज को सवारी नहीं मिल पा रही हैं। यहां दस से पंद्रह मिनट में सेवाएं चलती थी, लेकिन अब यात्रियों में अभाव में बसें कैंसिल करनी पड़ रही है। रोजाना 50 लाख रुपये का नुकसान इस सीजन में रोडवेज की रोजाना एक करोड़ 80 लाख रुपये तक इनकम होती थी, लेकिन आपदा के चलते यात्री कम होने पर एक करोड़ 30 लाख रुपये हो पा रही है। ऐसे में रोडवेज में आर्थिक संकट बढ़ रहा है। डीजल के खर्चे निकालने मुश्किल हो रहे हैं। कर्मचारियों को अभी तक अगस्त का वेतन नहीं मिल पाया। निजी बसों में भी घट गए यात्री पर्वतीय क्षेत्रों की निजी बस सेवाएं परेड ग्राउंड से चलती हैं। लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी रूट की बस सेवाएं सड़कें बंद होने से सोमवार से बंद चल रही है। बाकी क्षेत्रों की बस सेवाओं में भी बहुत कम यात्री सफर कर रहे हैं। जिस कारण बस मालिक परेशान हैं, उनको ड्राइवर, कंडक्टर का वेतन और बस की मरम्मत, बैंक लोन की किश्त और अन्य खर्चे निकालने की चिंता सता रही है। बसों में यात्री बहुत कम हो गए हैं। लोग यात्रा करने से परहेज कर रहे हैं। सभी डिपो को निर्देश दिए हैं कि बस सेवाओं को तभी चलाएं जब उनमें इतने यात्री हो जाएं कि ऑपरेटिंग का खर्चो निकल जाए। खाली बसें दौड़ाने के लिए मना किया गया है। -पवन मेहरा, महाप्रबंधक (संचालन), रोडवेज