जानलेवा मौसम में चुनाव
देश में होने वाले लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण अब पूरा होने को है। 2 जून को अंतिम चरण का चुनाव होना है इसके बाद 4 जून को नई सरकार की सूरत साफ होगी। इधर इस बार का यह लोकसभा चुनाव मतदान कर्मियों के लिए एक बड़ी मुसीबत भी लेकर आया है। उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भीषण गर्मी का प्रकोप है और कर्मचारियों के लिए एक-एक पल बिताना भी मुश्किल हो रहा है। उत्तर प्रदेश से दिल दहलाने वाली तस्वीर सामने आई है जिसमें मतदान ड्यूटी में लगे पोलिंग पार्टी के सात कर्मचारियों की मृत्यु हो गई तो 30 से अधिक कर्मचारियों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है। यूपी के मिर्जापुर में हुए इस घटना पर लोकसभा चुनाव के एक दिन पहले इतनी बड़ी खबर को लेकर विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग को भी आड़े हाथों लिया है और इसे लेकर अब राजनीति भी तूफान पर है। सवाल उठ रहे हैं कि चुनाव आयोग द्वारा ऐसे समय में क्यों तिथियां तय की गई जब उत्तर प्रदेश सहित देश के दूसरे राज्यों में पारा 40 से 50 तक पहुंच जाता है। वाकई स्थिति बेहद खराब हो चुकी है पिछले 6 चरण के चुनाव में हुए कम मतदान का कारण भी भीषण गर्मी बताई जा रहा है। निश्चित तौर पर चुनाव आयोग को वर्तमान परिस्थितियों से कुछ सीखने की जरूरत है क्योंकि यदि ऐसे हालातो में चुनाव करवाए जाएंगे तो यह न केवल मतदाताओं के लिए बल्कि चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों के लिए भी जीवन मरण का सवाल हो सकता है। राजनीतिक दलों के लिए भी भीषण गर्मी के बीच चुनाव प्रचार करना काफी कष्टदाई साबित हुआ है। जिन राज्यों में पहले चरण के दौरान 19 अप्रैल को चुनाव किए गए वहां कुछ राहत जरूर रही लेकिन अगले 6 चरण मतदाताओं और चुनाव कर्मियों के लिए बेहद मुसीबत भर और कष्टकारी साबित हुए हैं। कहीं ना कहीं इस पूरे चुनाव आयोजन के दौरान चुनाव आयोग की अदूरदर्शिता भी सामने आई है जिसने मौसम और गर्मी की विभीषिका का आकलन ही नहीं किया और तुरंत फुरत में बिना होमवर्क किए ही भीषण गर्मी के बीच चुनावों की घोषणा कर दी। सवाल यह उठता है कि इन कर्मचारियों की मौत के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? यही चुनाव यदि जनवरी से मार्च के मध्य कर लिए जाते तो न केवल एक अच्छे माहौल के बीच चुनाव प्रक्रिया संपन्न होती बल्कि इतने अधिक लोगों की जान भी न जानी। विपक्षी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाया है। बहरहाल अब तो अंतिम चरण का ही मतदान बाकी रह गया है लेकिन भविष्य के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि चुनाव ऐसे समय में कराया जाए जब मौसम मतदाताओं को लंबी-लंबी कतारों में खड़ा करने लायक हो या फिर सुरक्षाकर्मियों एवं मतदान कर्मियों के लिए अनुकूल साबित हो। वातानुकुलित कमरों में बैठकर नीतियां बनाने वालों को अपने काम करने के तरीकों पर गहराई से मंथन करने की जरूरत है।