देहरादून। केदारनाथ जैसी आपदा के बाद भी हम नहीं चेते और रोक के बावजूद नदी-नालों के किनारे बेधड़क निर्माण होते रहे। हाईकोर्ट से लेकर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक ने नदियों के किनारे अतिक्रमण को लेकर सख्त रुख दिखाया, लेकिन सिस्टम की सख्त नजर नहीं आया। आज हालात यह है कि नदियों का मूल स्वरूप बचा नहीं है और जब भारी बारिश के बीच नदियां उफान पर आ रही है तो अपनी राह में बने निर्माणों को ढहाती ले जा रही है। उत्तराखंड में नदियों के किनारे निर्माण की बहस ने केदारनाथ आपदा के बाद तेजी पकड़ी थी। तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने नदियों के किनारे निर्माण को लेकर नीति बनाने का ऐलान किया था। इधर, सरकारें बनती-बदलती गई और नदियों को लेकर सिस्टम की सुस्ती ने अतिक्रमण की बाड़ सी ला दी। देहरादून में तो रिस्पना-बिंदाल किनारे बसी बस्तियों को नियमित करना राजनैतिक मुद्दा तक बन गया। इस बीच हाईकोर्ट, एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि नदियों के प्रवाह क्षेत्र के दो सौ मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं हो सकेगा। इधर, देहरादून में एनजीटी के आदेश पर इस साल जनवरी में रिस्पना-बिंदाल किनारे अतिक्रमण चिन्हित किए गए। अकेले रिस्पना किनारे 27 बस्तियों में अकेले सरकारी जमीन पर 525 अवैध निर्माण चिन्हित भी किए गए। लेकिन दून में ताजा आपदा में रिस्पना किनारे की ये 27 बस्तियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। जो बिल्कुल नदी से सटी या नदी घेरकर तैयार हुई हैं।
सहस्रधारा का मामला नैनीताल हाईकोर्ट में भी गया: नदी किनारे अतिक्रमण को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में तीन अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर भी सुनवाई चल रही हैं। ये याचिकाएं अजय नारायण शर्मा, रेनू पाल और उर्मिला थापा ने नैनीताल हाईकोर्ट में दायर की हैं। एक याचिका में देहरादून के सहस्त्रधारा में जलमग्न भूमि में भारी निर्माण कार्यों से जल स्रोतों के सूखने के साथ ही पर्यावरण को खतरा पैदा होने की बात कही गई। एक अन्य याचिका में ऋषिकेश में नालों, खालों और ढांग पर बेइंतहां अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर की गई है। जबकि तीसरी जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ करीब नदियों की भूमि पर अतिक्रमण किया जा चुका है। हाईकोर्ट इसमें सरकार से अतिक्रमण हटाने के साथ अनुपालन रिपोर्ट पेश करने के लिए इस साल अप्रैल में आदेश दे चुका है।
मसूरी की पहाड़ियों पर बढ़ रहा भूस्खलन का खतरा: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी का लैंडस्लाइड सस्प्टिबिलिटी मैपिंग पर एक अध्ययन जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित हुआ है। इसमें मसूरी के भटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्प्टी फॉल, खट्टापानी, लाइब्रेरी रोड, गालोगीधार और हाथीपांव जैसे इलाके दरारयुक्त क्रोल चूना पत्थर और 60 डिग्री से अधिक ढलानों पर बसे होने से भूस्खलन की अधिक संभावनाएं जाहिर की गई है। इस अध्ययन में कुल क्षेत्रफल का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा अत्यधिक संवेदनशील और करीब 29 प्रतिशत मध्यम संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। शोध रिपोर्ट में इन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का गैर प्राकृतिक निर्माण और हवाई पर्यटन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने की सिफारिश की गई थी।