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फर्जी ई-वे-बिल से 529 करोड़ की जीएसटी चोरी

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पिछले साल हुआ था आठ हजार करोड़ की चोरी का खुलासा
संवाददाता, काशीपुर। फर्जी ई वे बिल बनाकर 529 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी का मामला सामने आया है। मामले में 34 फर्मों के विरुद्ध काशीपुर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करायी गयी है। राज्य कर विभाग के डिप्टी कमिश्नर आर एल वर्मा ने यह मामला दर्ज कराया है। जीएसटी चोरी करने वाली फर्में काशीपुर, जसपुर तथा हल्द्वानी की हैं। इस फर्जीवाड़े में जिन फर्मों को दिखाया गया वहां जब जांच करने पर एसटीएफ व्यापार कर की टीम पहुंची जो देखकर हैरान रह गए कि उनका अस्तित्व ही नहीं था।
यही नहीं रेंट एग्रीमेंट जिस भवन स्वामी के नाम पर किया गया था। उन्होंने रेंट एग्रीमेंट पर अपने हस्ताक्षर को फर्जी बताए थे। पिछले साल दिसंबर में उत्तराखंड कर विभाग ने राज्य में जीएसटी के अंतर्गत 8000 करोड़ के फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। फर्जीवाड़े की जांच के लिए जीएसटी कर मुख्यालय की 55 टीमों ने राज्य कर आयुक्त सौजन्या के निर्देशन पर छापेमारी की कार्रवाई की थी। जिसमें मौके पर विभिन्न फर्मों के पंजीकृत सारे पते फर्जी पाए गए। कुल 70 फर्जी फर्मों के जरिए इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया था।
फर्जी कागजात बनवाकर गोलमाल
गोरखधंधे की जांच की दौरान जांच टीम को पता चला कि इन सभी 34 फर्मों के स्वामियों ने फर्जी कागजात बनवाकर यह कर चोरी की है। इन 34 में से 17 फर्में हल्द्वानी क्षेत्र तथा काशीपुर क्षेत्र की 10 व रुद्रपुर की तीन तथा चार फर्में देहरादून क्षेत्र में पंजीकृत हैं। इन सभी 34 फर्मों ने फर्जी कागजात के जरिए बिना कोई माल सप्लाई के ई वे बिल बनाकर 529 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान किया। हालांकि इनमें आठ फर्मों ने अक्टूबर 2019 का रिटर्न जीएसटी पोर्टल पर दाखिल किया है जबकि अन्य फर्मों ने जीएसटी रिटर्न ही दाखिल नहीं किया। बहरहाल प्रदेश में जीएसटी चोरी का यह मामला आने के बाद हड़कंप मच गया है। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर जांच आरम्भ कर दी है।
पिठले साल प्रदेश में हुआ था आठ हजार करोड़ फर्जीवाड़ा
पिछले साल जीएसटी देहरादून की 55 टीमों ने 70 व्यापार स्थलों पर सर्वेक्षण करके लगभग 8000 करोड़ के फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। विभाग को लंबे समय से खबर मिल रही थी कि उत्तराखंड राज्य में कुछ लोगों की ओर से जीएसटी के तहत फर्जी तरीके से पंजीयन कराकर करोड़ों रुपये का कारोबार ई-वे बिल के जरिए किया जा रहा है।
70 फर्मों की ओर से बनाए गए ई-वे बिल
जांच में पाया गया कि 70 फर्मों की ओर से राज्य के भीतर और बाहर दो माह में आठ हजार करोड़ रुपये के ई-वे बिल बनाए गए। इन 70 में से 34 फर्म दिल्ली से मशीनरी और कंपाउंड दोनों की खरीद के लिए ई-वे बिल बना रही थीं, जिनका मूल्य करीब 1200 करोड़ है। उसके बाद उन फर्मों द्वारा आपस में ही खरीद ब्रिकी के साथ-साथ प्रांत के बाहर की फर्मों को भी खरीद बिक्री दिखाई जा रही थी। 26 फर्मों के माध्यम से चप्पल की बिक्री अन्य राज्यों आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र को दिखाई जा रही थी जबकि मौके पर न कोई फर्म थी और न ही पंजीकृत व्यक्ति।
ज्यादातर वाहन थे पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत
ई-वे बिल में प्रयोग किए गए वाहनों की प्राथमिक जांच पर यह पाया गया कि प्रयोग किए ज्यादातर वाहन पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत हैं। जांच में खुलासा यह भी हुआ कि 80 लोगों ने 21 मोबाइल नंबर और ई-मेल का प्रयोग करते हुए दो-दो की साझेदारी में 70 फर्में पंजीकृत की हैं। अकेले उधम सिंह नगर जिले की 68 फर्मों की जांच में पाया गया कि वह फर्जी पंजीकरण के आधार पर संचालित हो रही थी। इस तरह राज्य कर विभाग के आकलन में करीब 8000 करोड़ रुपये के ई-बे बिल बनाए हुए पाए गए जबकि 1455 करोड़ रुपये की कर चोरी का मामला पाया गया था।

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