नदियों के तट पर कछुआ चाल से चल रहा बाढ़ सुरक्षा दीवार निर्माण कार्य

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काश्तकारों को सता रहा बरसात के समय दोबारा भू-कटाव का डर
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : अगस्त माह में हुई अतिवृष्टि से विकराल बनी नदियों ने काश्तकारों की कई बीघा भूमि बहा दी थी। सरकारी सिस्टम ने काश्तकारों को नदियों के तट पर सुरक्षा दीवार निर्माण करवाकर भूमि की सुरक्षा का आश्वासन दिया था। लेकिन, जिस कछुआ चाल से सिस्टम सुरक्षा दीवार निर्माण कर रहा है उससे लगता है कि इस वर्ष भी बरसात में काश्तकारों को नुकसान झेलना पड़ेगा। यही नहीं खोह नदी के तट पर आवासीय भवनों के आसपास भी अब तक सुरक्षा दीवार का निर्माण नहीं हो पाया है।
खोह, सुखरो व मालन नदी हर वर्ष बरसात के समय काश्तकारों की कई बीघा भूमि लील रही है। सबसे अधिक नुकसान काश्तकारों को बीते वर्षा काल में झेलना पड़ा। विकराल नदी ने जहां खोह नदी के तट पर बसे 35 भवनों को ढहा दिया था। वहीं, नदियों काश्तकारों की भी कई बीघा भूमि नदी की भेंट चढ़ गई थी। नुकसान झेल रहे काश्तकारों ने जनप्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों से बाढ़ से भूमि बचाव की योजना बनाने की मांग उठाई थी। जिसके बाद काश्तकारों को जल्द ही बाढ़ सुरक्षा दीवार बनाने का आश्वासन दिया गया। लेकिन, जिस तरह से नदियों के तट पर बाढ़ सुरक्षा दीवार निर्माण कार्य चल रहा है उससे लगता नहीं कि वह बरसात से पूर्व यह पूर्ण हो पाएगा। काश्तकारों का कहना है कि बीते दस साल में नदी तट पर करीब पचास बीघा खेती की जमीन बहकर नदी में समा गई है। इस वर्ष की आपदा ने किसानों को बुरी तरह झकझोर दिया है।

सिंचाई गूल का नहीं हुआ निर्माण
भाबर क्षेत्र में बाढ़ से सिंचाई गूलों को भी भारी नुकसान हुआ था। ऐसे में काश्तकारों के समक्ष खेती के लिए पानी की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। लेकिन, अब तक विभाग ने सिंचाई गूलों की मरम्मत तक नहीं करवाई है। जबकि, भाबर क्षेत्र के काश्तकार लगातार गूलों के मरम्मत की मांग उठा रहे हैं। सरकारी सिस्टम की कार्यप्रणाली से लगता है कि उसे काश्तकारों के हितों को लेकर कई परवाह ही नहीं है।

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