फोरेस्ट बायोमास से नेचुरल डाई पर वेबिनार का हुआ आयोजन
देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान के रसायन एवं जैव पूर्वेक्षण प्रभाग द्वारा फोरेस्ट बायोमास से नेचुरल डाई विषयक एक वेबिनार का आयोजन भारतीय वानिकी
अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, (आईसीएफआरई) देहारादून के बोर्ड रूम में किया गया। इस वेबिनर मे प्रमुख शैक्षणिक एवं वैज्ञानिक संस्थानों के विशिष्ट वैज्ञानिक,
शिक्षाविद, एफआरआई के अनुभवी वैज्ञानिक, गैर सरकारी संगठनों, केन्द्रीय रेशम बोर्ड, राज्य रेशम बोर्ड और उद्योगों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। मुख्य अतिथि के
रूप मे वेबिनर का उद्घाटन करते हुए डॉ अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ने बायो इकोनोमी के युग में बायोमास उपयोग
के महत्व को रेखांकित किया। डॉ रावत ने बताया कि इस वेबिनर का आयोजन भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहारादून के दिशा निर्देशों के
अनुपालन में किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य वन बायोमास का नेचुरल डाई के उत्पादन उपयोग हेतु अनुसंधान आवश्यकताओ का पता लगाना है ताकि वर्तमान
जरूरतों के अनुसार अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों को समंजित किया जा सके। वेबिनर का उद्देश्य शोधकर्ताओं और हितधारकों, उद्यमियों और अन्य लाभार्थी समूह
के बीच एक प्रभावी और रणनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए उनके विचारों और आकांक्षाओं को साझा करने के लिए मंच प्रदान करना है। प्रारम्भ मे डॉ. विनीत
कुमार, प्रमुख, रसायन एवं जैव पूर्वेक्षण प्रभाग ने प्रतिनिधियों और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और वेबिनर के उदेशयों एवं विभिन्न कार्यक्रमों कि रूपरेखा के
बारे में जानकारी दी. इसके साथ ही डॉ विनीत ने प्रभाग द्वारा अबतक नेचुरल डाई एवं अन्य सभी अनुसन्धानों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। डॉ प्रवीन
उनियाल ने फॉरेस्ट बायोमास से नेचुरल डाई प्राप्त करने के संदर्भ में किए गए अनुसंधानों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। इसके उपरांत डॉ बैसी सेसिल, सलाहकार
(हैण्डलूम), क्राफट एजुकेशन एवं रिसर्च सेंटर, चेन्नई ने ओल्डनलैण्डिया अंबलेटरू प्राचीन कालीन लाल रंग विषय पर अपना व्याख्यान दिया। अशोक थोरी, सलाहकार
(नेचुरल डाई) ने औषधीय एवं प्राकृतिक रंग हेतू फॉरेस्ट बायोमास के सतत उपयोग विषय पर प्रकाश डाला। तदोपरांत प्राकृतिक रंगों के औद्योगिक परिप्रेक्ष्य पर रचित
जैन, एस0ए0एम0 वेजिटेबल्स कलर लि0, मुरादाबाद द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। गैर सरकारी संस्था अवनी, पिथौरागढ से रश्मि भारती ने उत्तराखण्ड राज्य में
प्राकृतिक रंगों के उत्पादन को प्रोत्साहन देते हुए सतत आजीविका एवं चक्रीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने की आवश्यकता पर बल दिया। आई0एफ0जी0टी0बी0,
कोयंबटूर के डॉ एन0 सेंथिल कुमार ने लाल ईमली से प्राकृतिक रंगों की प्राप्ति की संभावना पर प्रकाश डाला। तदोपरांत डॉ एस0 एन0 चट्टोपाध्याय,
एन0आई0एन0एफ0ई0टी0, कोलकाता द्वारा प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर लिगनोसेल्यूलोजिक फाईबर की कार्यात्मक गुणवत्ता में सुधार विषय पर व्याख्यान दिया।
यावर अली शाह, ए0एम0ए0 हर्बल्स, लखनऊ ने अपने व्याख्यान में वस्त्रों की प्राकृतिक रंगाई हेतू रणनीतिक सततता विषय पर बल दिया। इसके उपरांत श्री अनिल
चंदोला, भारतीय गा्रमोत्थान संस्थान, ऋषिकेश ने विभिन्न रंगों के प्राकृतिक फाइबर के संयोग से विभिन्न रंगों के वस्त्रों को तैयार करने की संभावना पर प्रकाश
डाला तथा इस विधि से उत्पादित कई वस्त्र प्रदर्शित भी किए। व्याख्यानों की समाप्ति के बाद पैनल चर्चा के दौरान डॉ वाय0 सी0 त्रिपाठी, डॉ ए0 के0 पाण्डे, डॉ राकेश
कुमार, डॉ वी0 के0 वाष्र्णेय, डॉ प्रदीप शर्मा, व0अ0सं0, डॉ डी0 थंगामनी, आई0एफ0जी0टी0बी0, कोयंबटूर, श्री मोल्फा, के0वी0आई0बी0, उत्तराखण्ड, डॉ कार्तिक
सामंता, एन0आई0एन0एफ0ई0टी0, कोलकाता, प्रो0 के0 कुमारन, टी0एन0ए0यू0, कोयंबटूर उपस्थित रहे। इस सत्र के अंतर्गत सभी प्रतिभागी एवं पैनल के सदस्यों
ने प्राकृतिक रंगों के उत्पादन विपणन गुणवत्ता सुधार चुनौतियों एवं समस्याओं एवं अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की। इस सत्र के दौरान नेचुरल
डाई के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार एवं आजीविका की संभावना पर भी विस्तृत चर्चा हुई। इस वेबिनार के दौरान संस्थान एवं स्थानीय संस्थाओं के अतिरिक्त भारत के
कोने कोने से कुल चालीस प्रतिभागियों ने शिरकत की। वेबिनार का समापन डॉ वाय0 सी0 त्रिपाठी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।