चमोली आपदा में मुआवजा न पाने वाले पीड़ितों के भरण-पोषण की व्यवस्था करे सरकार% हाईकोर्ट
नैनीताल। हाई कोर्ट ने चमोली के रैणी गांव में ग्लेशियर फटने के दौरान आई आपदा में मृतकों और घायलों को अब तक मुआवजा न मिलने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि जिन लोगों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है, उन लोगों के भरण पोषण करने की व्यवस्था करे। अगली सुनवाई के लिए 8 सितम्बर की तिथि नियत की है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ती आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा है कि रैणी गांव में फरवरी माह में ग्लेशियर फटने जैसी आपदा सामने आई थी। जिसमें कई लोगों की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हुए और राज्य सरकार के द्वारा अब तक किसी भी घायल व मृतक के परिवार वालों को मुआवजा नहीं दिया और ना ही राज्य सरकार के द्वारा मुआवजा वितरित करने के लिए कोई मानक बनाए गए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा क्षेत्र में काम कर रहे नेपाली मूल के श्रमिकों समेत गांव के श्रमिकों को मुआवजा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाए और राज्य सरकार के द्वारा अब तक मृत्यु प्रमाण पत्र तक जारी नहीं किए गए हैं और ना ही मौत के आंकड़ों की पुष्टि की गई है याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार की आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है ,जो आपदा आने से पहले उसकी संकेत की सूचना दें सके। ताकि आपदा आने से पहले उसकी जानकारी मिल सके और राज्य सरकार के द्वारा अब तक उच्च हिमालई क्षेत्रों की मनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में सरकार की कई अनियमितताएँ है। जिस तरफ आज तक राज्य सरकार का 2014 से अब तक ध्यान नहीं गया जिस वजह से चमोली गांव में इतनी बड़ी आपदा आई और कई लोगो की मौत हुई । उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं जिस वजह से बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती।
वहीं याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है कर्मचारी को केवल सुरक्षा के नाम पर हेलमेट और वोट दिए हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई और ना ही कर्मचारियों के कोई उपकरण मौजूद है ताकि आपदा के समय कर्मचारी अपनी जान बचा सकें। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि एनटीपीसी वर्क कुंदन ग्रुप के ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का नक्शा कंपनी के द्वारा आपदा के बाद उपलब्ध नहीं करवाया गया जिस वजह से राहत व बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लिहाजा इन सभी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही भी दर्ज की जाए।