तस्करों के पास बंदूक, वनकर्मी लाठी के सहारे

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हल्द्वानी। मोहन भट्ट उत्तराखंड के जंगलों में बंदूकों के साथ तस्करी करने वाले जहां वन विभाग के लिए आए दिन चुनौती बन रहे हैं वहीं उन्हें रोकने के लिए विभाग के कर्मचारियों को लाठियां थमाई जा रही हैं। हल्द्वानी स्थित वानिकी प्रशिक्षण केन्द्र (एफटीआई) में वन कर्मियों को बकायादा लाठी चलाने की ट्रेनिंग दी गई है। केरल से बुलाए गए प्रशिक्षकों ने चार दिन लगातार रेंजर्स और फॉरेस्ट गार्ड को लाठियां चलाने का प्रशिक्षण दिया है। उत्तराखंड के 71 प्रतिशत हिस्से की सुरक्षा का जिम्मा जिस वन विभाग के पास है उसके पास अपने कर्मचारियों को असलहा चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। एफटीआई में देशभर के साथ उत्तराखंड के रेंजर, फॉरेस्टर व फॉरेस्ट गार्ड को ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें कई विधाएं सिखायी जाती हैं, इनमें सबसे प्रमुख खुद को सुरक्षित करते हुए वन व वन्यीजीवों की सुरक्षा करना है। इसके लिए वन कर्मियों को पर्याप्त मात्रा में आधुनिक असलहे उपलब्ध कराने के साथ उन्हें चलाने की ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए। वहीं उत्तराखंड में विभाग के पास थोड़ा बहुत असलहा तो हैं लेकिन इन्हें चलाने की ट्रेनिंग देने की कोई व्यवस्था नहीं है। ट्रेनिंग के लिए पूर्व में एफटीआई प्रबंधन ने पुलिस और सेना को पत्र लिखा, जिसका जवाब ना में मिला है। ऐसी स्थिति में अधिकारियों ने लाठियों का प्रशिक्षण देने की शुरुआत की है। इस बार केरल से दो कलारीपयट्टू प्रशिक्षक बुलाए गए, जिन्होंने प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग दी है। केरल की प्राचीन युद्धकला है कलारीपयट्टू कलारीपयट्टू केरल की प्राचीन युद्ध कला है। जानकारों का कहना है कि कलारीपयट्टू दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट में से एक है। इसमें लोग तलवार, लाठी, खंजर, भाला और ढाल आदि का उपयोग करना सीखते हैं। अलग राज्य बनने के बाद नहीं आए गोली और असलहे अलग राज्य बनने के बाद गोली और नए असलहे नहीं आए हैं। इसका कारण बजट का संकट बताया जाता है। आईएफएस ही अपने स्तर से फॉरेस्ट गार्ड और रेंजर को सिखाते हैं। आईएफएस को प्रशिक्षण के दौरान ही आईएमए देहरादून में प्रशिक्षण दिया जाता है। राज्य बनने से पहले कानपुर एफटीआई में प्रशिक्षण होता था। अनुभव से सीखते हैं बंदूक चलाना वन विभाग में कुछ रेंज में 315 बोर, 12 बोर आदि के असलहे हैं, लेकिन उन्हें चलाने का प्रशिक्षण नहीं मिला है। एक फॉरेस्ट गार्ड ने बताया कि पूर्व में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके वरिष्ठ अधिकारियों से कभी मौका लगने पर जानकारी हासिल करते हैं। हालांकि ऐसा मौका कम ही मिलता है। सुरक्षा के लिहाज से कुछ वन कर्मियों ने लाइसेंसी हथियार अपने पास रखे हैं। विभाग के पास रेंजर, फॉरेस्टर, फॉरेस्ट गार्ड को असलहे चलाने की प्रशिक्षण देने की व्यवस्था नहीं है। इसके पुलिस और सेना को पत्र लिखा गया था लेकिन तकनीकी दिक्कतों के चलते वहां भी प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं हो पाई। एफटीआई में फिलहाल लाठी चलाने का प्रशिक्षण दिया है ताकि वन कर्मी सुरक्षा के लिए कम से कम कुछ तो कर सकें। डॉ. तेजस्विनी पाटिल, निदेशक, एफटीआई

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