नई शिक्षा नीति में गुरुदेव के शिक्षा दर्शन का महत्वपूर्ण प्रभाव है: निशंक
नैनीताल। शांति निकेतन ट्रस्ट फॉर हिमालया के तत्वावधान में शुक्रवार को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि नई शिक्षा नीति में गुरुदेव के शिक्षा दर्शन का महत्वपूर्ण प्रभाव है। वह नई शिक्षा नीति तथा गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर विषय पर वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. निशंक ने कहा कि यह वर्ष गुरुदेव की ओर से 1921 में स्थापित विश्वभारती विवि शांति निकेतन के शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। वहीं इसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगभग 35 साल बाद देश को नई शिक्षा नीति मिली है, जिसके निर्माण में गुरुदेव के शिक्षा दर्शन का महत्वपूर्ण प्रभाव है। कहा कि 2022 में गुरुदेव का जन्मोत्सव उनकी कर्मभूमि रामगढ़ में विश्वभारती के नए परिसर में आयोजित किया जाएगा। विशिष्ट अतिथि सांसद अजय भट्ट ने कहा कि सरकार शीघ्र ही कैबिनेट प्रस्ताव में 300 एकड़ भूमि का हस्तांतरण विश्वभारती को कर देगी। विश्वभारती विवि के कुलपति प्रो. विद्युत चक्रबर्ती ने शिक्षा नीति और मानवतावाद, सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रनिर्माण, वैश्वीकरण, आत्मनिर्भर भारत, मानव संसाधन विकास, स्वरोजगार आदि विषयों पर गुरुदेव के दर्शन को जोड़ते हुए उसे देश की आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण बताया। विशिष्ट अतिथि रिबा गांगुली दास सचिव विदेश मंत्रालय ने गुरुदेव को विश्वपुरुष की संज्ञा दी। कार्यक्रम में कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एनके जोशी ने रामगढ़ में गुरुदेव की विरासत को संरक्षित एवं संवर्धित करने के प्रयासों की सराहना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ट्रस्ट के प्रन्यासी विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने सभी अतिथियों तथा सैकड़ों की संख्या में देश-विदेश के प्रतिभागियों का आभार किया। इससे पूर्व, केंद्रीय शिक्षा मंत्री के शिक्षा सलाहकार डॉ. राजेश नैथानी ने वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। ट्रस्ट के सदस्यों ने रामगढ़ स्थित गुरुदेव की कर्मभूमि पर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया।
देहरादून में होगी लेखक गांव की स्थापना
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि उत्तराखंड में देश और दुनिया के साहित्य प्रेमियों की सहायता से एक ऐसे लेखक गांव की स्थापना की जाएगी, जिसमें सभी लेखकगण अपनी वृद्धावस्था के दौर में अपना संपूर्ण शेष जीवन यापन कर सकेंगे। उसमें देश-दुनिया के ऐसे सभी लेखकों को आमंत्रित किया जाएगा, जो एक स्वछंद प्राकृतिक परिवेश में साहित्य सृजन करना चाहते हैं।