हल्द्वानी। हाईकोर्ट ने गढ़वाल मंडल विकास निगम प्रबंधन की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए श्रम न्यायालय देहरादून के आदेश को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि निगम प्रबंधन के एक कर्मचारी की सेवा समाप्त करना अवैध व गैरकानूनी था और वह पुनर्बहाली के साथ पूरे बकाया वेतन का हकदार है। मामले के अनुसार, श्रम न्यायालय ने 25 अक्तूबर 2023 को अपने आदेश में कर्मचारी की सेवा समाप्ति को अवैध बताते हुए, उसे 17 दिसंबर 2018 से सेवा में बहाल करने और सभी बकाया वेतन देने का आदेश दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए गढ़वाल मंडल विकास निगम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उक्त कर्मचारी मई 1995 से निगम में दैनिक वेतन पर चतुर्थ श्रेणी पद पर कार्यरत था। 3 दिसंबर 2018 को उसका स्थानांतरण हुआ और उसने 5 दिसंबर 2018 को नई जगह पर ज्वाइन किया, लेकिन 17 दिसंबर 2018 को उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। निगम का आरोप था कि कर्मचारी कार्य में लापरवाही बरत रहा था, जबकि कर्मचारी ने यह दिखाया कि उसने लगातार 18 वर्ष से अधिक अवधि तक सेवा की और प्रति वर्ष 240 दिन से अधिक कार्य किया। हाईकोर्ट ने पाया कि कर्मचारी को सेवा से हटाने से पहले कोई विभागीय जांच नहीं की गई और न ही औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 6-एन का पालन किया गया, जिसमें एक माह का नोटिस, मुआवजा और राज्य सरकार को सूचना देना अनिवार्य है। निगम की ओर से कोई ठोस साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किए गए कि सेवा समाप्ति कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई। बुधवार को सुनवाई पर कोर्ट ने कहा कि जब सेवा समाप्ति अवैध पाई गई है तो पूर्ण बकाया वेतन देना सामान्य नियम है और निगम कोई कारण नहीं दिखा सका कि इससे अलग किया जाए। इसलिये श्रम न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।