देश के सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में शामिल पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाने को लेकर असमंजस में गृहमंत्रालय
नई दिल्ली, एजेंसी। पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डालने को लेकर केंद्रीय गृहमंत्रालय असमंजस की स्थिति में है। गृहमंत्रालय में कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि प्रतिबंधित सूची में डालने के बाद ऐसे संगठन के सदस्य और समर्थक नए संगठन के तहत सक्रिय हो जाते हैं, जैसा कि स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) और इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) के मामले में हो चुका है। वहीं पीएफआइ के पूरे देश में फैले संगठनात्मक ढांचे को तोड़ने के लिए प्रतिबंध को जरूरी बता रहे हैं। इस मामले में अंतिम फैसला गृहमंत्री अमित शाह को लेना है।
दरअसल, रामनवमी के अवसर देश के कई भागों में हिंसक घटनाओं में पीएफआइ की भूमिका को लेकर इस संगठन को प्रतिबंधित किये जाने की मांग उठ रही है। इसके पहले सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से लेकर दिल्ली दंगों में पीएफआइ की भूमिका सामने आ चुकी है और इस मामले में पीएफआइ के कई लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा रही है। इसके साथ ही पिछले साल बेंगलुरू में हिंसा के पीटे पीएफआइ की साजिश की जांच हो रही है। यही नहीं, केरल में आतंकी ट्रेनिंग और हिंदुत्व संगठनों से जुड़े लोगों की हत्या में भी पीएफआइ के जुड़े लोगों के नाम सामने आ चुके हैं और एनआइए ने अपनी चार्जशीट में इसी आतंकी गतिविधियों के बारे में बताया है।
पीएफआइ की गतिविधियों को देखते हुए झारखंड सरकार इस पर प्रतिबंध लगा चुकी है, लेकिन केंद्रीय स्तर पर इसे प्रतिबंधित करने पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार समय-समय पर कई राज्य सरकारें और अन्य संगठन गृहमंत्रालय से पीएफआइ को प्रतिबंधित करने के लिए पत्र लिखती रही है। लेकिन सिमी और आइएम के अनुभवों को देखते हुए गृहमंत्रालय इससे हिचक रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंकी हमलों में सिमी की संलिप्तता के बाद उस पर प्रतिबंध लगाया गया और उसके कई अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन कुछ दिनों बाद ही सिमी से जुड़े लोगों ने आइएम के नाम से नया संगठन बनाकर आतंकी हमले शुरू कर दिये। उनके अनुसार पीएफआइ में भी आइएम से जुड़े कई लोग सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि पीएफआइ पर प्रतिबंध लगा भी दिया गया तो उससे जुड़े लोग और समर्थन नया संगठन बनाकर फिर सक्रिय हो सकते हैं।
वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, गृहमंत्रालय की रणनीति हिंसा या सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के हर मामले में पीएफआइ के भूमिका जांच करना और उसमें संलिप्त पाए गए लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना है। सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की फंडिंग और दिल्ली दंगों के मामले में ऐसा किया गया है। इसके साथ ही ईडी पीएफआइ को होने वाली फंडिंग की जांच कर रहा है। वहीं पीएफआइ पर प्रतिबंध को जरूरी बताने वाले एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पूरे देश में इसका सांगठनिक ढांचा तैयार हो चुका है और इसका लगातार विस्तार हो रहा है। प्रतिबंध लगाने से इस पूरे ढांचे को एक झटके में तोड़ने में मदद मिलेगी। कोई नया संगठन बनता भी है तो पूरे देश में उसका ढांचा तैयार होने में कई साल लग जाएंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हर हिसंक घटना में पीएफआइ की भूमिका सामने आ रही है, वह खतरनाक है और इसे तत्काल रोकने की जरूरत है।