नई दिल्ली । कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से शुरू हुआ संबंध अगर बाद में असहमति या निराशा के कारण खत्म हो जाए, तो इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस एम. नागप्रसन्न ने सुनवाई में कहा अगर वर्तमान अभियोजन को ट्रायल में जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह न्याय की विफलता और कानून के दुरुपयोग के समान होगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी रिश्ते के टूटने या असफल होने को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता, यदि वह प्रारंभ में दोनों की सहमति और इच्छा से स्थापित हुआ था।
मामला क्या था
रिपोर्ट्स के अनुसार, एक महिला और पुरुष की मुलाकात एक डेटिंग ऐप के ज़रिए हुई थी। दोनों के बीच सोशल मीडिया पर बातचीत शुरू हुई और बाद में वे एक रेस्त्रां में मिले। इसके बाद दोनों ने आपसी सहमति से एक होटल में संबंध बनाए। कुछ समय बाद महिला ने पुरुष पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। हाईकोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारी ने आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच हुई चैट और संवाद को जानबूझकर नजरअंदाज किया। इन चैट्स से यह स्पष्ट था कि दोनों के बीच संबंध आपसी सहमति से बने थे, किसी प्रकार का दबाव या धोखा नहीं था।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि सहमति से बने संबंधों और बलात्कार के बीच एक स्पष्ट कानूनी और नैतिक अंतर होता है। इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका को स्वीकार करते हुए एफआईआर को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का उपयोग प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवादों के हथियार के रूप में न किया जाए।