भारत को मिलेगा ब्रह्मास्त्र’ ? जो बना देगा दुश्मनों के लिए ‘पाताललोक’ का रसता ! चीन-पाकिस्तान की आएगी शामत

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विशाखापट्टनम । भारत की नौसेना के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना – प्रोजेक्ट 75 – धीरे-धीरे आकार ले रही है, जो भारतीय पनडुब्बी बेड़े को अत्याधुनिक बनाने का लक्ष्य रखती है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बियां विकसित करना है, जो भारतीय नौसेना की समुद्री युद्ध क्षमता को बढ़ा सकती हैं। इस तकनीक के कारण भारत की पनडुब्बियां बिना सतह पर आए लंबे समय तक पानी के भीतर रह सकेंगी, जिससे वे दुश्मन से पूरी तरह से छिपी रहेंगी और गुप्त मिशनों को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकेंगी।एआईपी तकनीक का उद्देश्य पनडुब्बियों को बिना सतह पर आने की आवश्यकता के लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की क्षमता प्रदान करना है। पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां समुद्र के नीचे अपने बैटरियों को रिचार्ज करने के लिए अक्सर सतह पर आती हैं, जिससे उनकी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। वहीं, एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बियां सप्ताहों तक बिना सतह पर आए समुद्र के भीतर रह सकती हैं। इससे इनकी गुप्तता और युद्धक्षमता में इजाफा होता है। इसके अतिरिक्त, एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन से लैस पनडुब्बियां अपने शोर को कम करके दुश्मन को अपनी उपस्थिति का पता नहीं चलने देतीं। यह तकनीक पनडुब्बियों को टोही और गुप्त मिशनों में बेहद प्रभावी बना देती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बियां बिना सतह पर आए 50,000 घंटे तक पानी में रह सकती हैं और बिना किसी शोर के अपने लक्ष्यों तक पहुंच सकती हैं, जिससे उनका टारगेट करना लगभग असंभव हो जाता है।
परियोजना 75 का महत्व
भारत की परियोजना 75 की परिकल्पना ने भारतीय नौसेना के भविष्य को पूरी तरह से बदलने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। इस परियोजना के तहत, भारत के पास 6 डीजल-इलेक्ट्रिक, 6 एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन संचालित और 6 परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बियां होंगी। यह भारत के पनडुब्बी बेड़े को और अधिक शक्तिशाली बना देगा और उसे समंदर में एक मजबूत और प्रभावी शक्ति बना देगा। मौजूदा वक्त में भारत के पास 17 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां और एक परमाणु पनडुब्बी है, लेकिन यह संख्या बहुत कम है अगर इसे वैश्विक संदर्भ में देखा जाए। भारत का उद्देश्य परियोजना 75I को पूरा करके अपनी समुद्री शक्ति को और बढ़ाना है, जो उसके सामरिक और रक्षा उद्देश्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। खासकर, यह परियोजना चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है, जिनके पास बहुत बड़ी पनडुब्बी ताकत नहीं है, खासकर एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बियों का अभाव है।
पनडुब्बी शक्ति के मामले में वैश्विक स्थिति
वैश्विक पनडुब्बी शक्ति के मामले में, रूस दुनिया में सबसे ज्यादा पनडुब्बियों का मालिक है, जिसकी संख्या 65 है। इसके बाद अमेरिका (64 पनडुब्बियां) और चीन (61 पनडुब्बियां) का नंबर आता है। भारत इस समय 18 पनडुब्बियों के साथ दुनिया में आठवें पायदान पर है। जबकि पाकिस्तान के पास केवल 5 बड़ी और 3 छोटी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं, लेकिन उसके पास कोई एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बी नहीं है, जो उसकी समुद्री सुरक्षा क्षमता को सीमित करती है।
जर्मन और स्पेनिश एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणालियों के बीच चयन
परियोजना 75I के तहत भारत को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक के लिए एक उपयुक्त प्रणाली का चयन करना है। इसके लिए दो प्रमुख दावेदार हैं: जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम और स्पेन की नवांटिया।
– जर्मन एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली पहले से ही छोटी पनडुब्बियों में इस्तेमाल की जा रही है और यह साबित भी हुई है, लेकिन भारतीय नौसेना की जरूरतों के हिसाब से यह पूरी तरह से उपयुक्त नहीं हो सकती है। भारतीय पनडुब्बियां बड़ी होती हैं, और उनकी संचालन क्षमता को ध्यान में रखते हुए जर्मन प्रणाली को अनुकूलित करना एक चुनौती हो सकता है।
– वहीं, स्पेनिश बायोएथेनॉल आधारित एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली अधिक आधुनिक और संभावनाओं से भरपूर मानी जाती है। यह प्रणाली ग्रीन एनर्जी पर आधारित है और पर्यावरण के लिए भी कम हानिकारक है। हालांकि, यह प्रणाली अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाई है और 2026 तक इसके सेवा में आने की संभावना है, जिससे भारत को थोड़ी देरी का सामना हो सकता है।
इन दोनों प्रणालियों में से किसी एक का चयन भारत की पनडुब्बी बेड़े के भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, क्योंकि इससे न केवल पनडुब्बियों की संचालन क्षमता प्रभावित होगी, बल्कि भारतीय नौसेना की सामरिक शक्ति और समुद्र पर प्रभावी नियंत्रण भी तय होगा।
तकनीकी और सामरिक चुनौतियां
हालांकि परियोजना 75I के लिए योजना बनाई जा चुकी है, लेकिन इसमें तकनीकी चुनौतियों के साथ-साथ राजनीतिक और वित्तीय बाधाएं भी मौजूद हैं। सही एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली का चयन और इसके लिए आवश्यक अनुसंधान एवं विकास को समय पर पूरा करना एक कठिन कार्य है। साथ ही, पनडुब्बियों की निर्माण लागत और समय सीमा पर भी कड़ी निगरानी रखनी होगी। सामरिक दृष्टि से, यह परियोजना भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि समुद्र में चीन और पाकिस्तान दोनों ही महत्वपूर्ण शक्ति हैं। एक मजबूत पनडुब्बी बेड़ा भारत को न केवल अपने तटीय इलाकों की सुरक्षा करने में मदद करेगा, बल्कि यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की प्रभावी उपस्थिति को भी सुनिश्चित करेगा। इससे भारत की समुद्री रणनीति में एक नया मोड़ आएगा और वह क्षेत्रीय ताकत के रूप में उभरेगा।
भविष्य में संभावनाएं
भारत के लिए यह परियोजना न केवल अपने पनडुब्बी बेड़े को आधुनिक बनाने का अवसर है, बल्कि यह एक नई तकनीकी दिशा में भी कदम बढ़ाने का मौका है। एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन पनडुब्बियां भारतीय नौसेना को विभिन्न मिशनों – जैसे टारगेट अटैक, टोही, और गुप्त ऑपरेशंस – में अहम भूमिका निभाने में मदद कर सकती हैं। इसके अलावा, यह पनडुब्बी क्षमता भारत को समुद्र पर सामरिक और सैन्य नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम बनाएगी। भारत की परियोजना 75I के तहत एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक से लैस पनडुब्बियां भारतीय नौसेना को नए आयाम पर पहुंचाएंगी। इन पनडुब्बियों की तैनाती से भारतीय पनडुब्बी बेड़ा न केवल अधिक शक्तिशाली और गुप्त होगा, बल्कि यह चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए समुद्र में एक बड़ा सामरिक खतरा बनेगा। जर्मन और स्पेनिश प्रणालियों के बीच चयन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय होगा, जो आने वाले वर्षों में भारत की समुद्री शक्ति को सुनिश्चित करेगा।

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