संपादकीय

उदासीन सरकारें, खोखले आश्वासन

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उत्तराखंड में लंबे समय से चली आ रही मूल निवास और भू-कानून की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। असल में राज्य बनने के साथ ही इस महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर तमाम संगठनों द्वारा आवाज उठाई जा रही है लेकिन अब तक की सभी सरकार है इस गंभीर मसले पर लीपापोती करती हुई ही नजर आ रही है। प्रदेश की जनता तमाम सरकारों के झूठे वादों और प्रलोभनों से अब तक आ चुकी है और नेताओं ने भी इसे केवल और केवल राजनीति का एक विषय बना लिया है। राज्य सरकारों की अनदेखी और बार-बार वादा खिलाफी के बाद अब तमाम संगठन एक मंच पर जुट आए हैं जिससे सरकार के कान खड़े हो गए हैं। इस दिशा में मूल निवास, भू-कानून को लेकर स्वाभिमान महारैली निकाली गई। साफ है कि किस मुद्दे पर अब लोगों के सफर का बांध बिट्टू रहा है हालांकि मुख्यमंत्री धामी ने आगामी सत्र में भू कानून को सदन में लाने का आश्वासन दिया है लेकिन लोग चाहते हैं कि इस मामले में सरकार लीपापोती करने के बजाए समिति बना कर स्थिति स्पष्ट कर दे। वैसे भी प्रदेशवासियों का अनुभव सरकारों एवं नेताओं के प्रति दगाबाजी का ही रहा है। स्थाई राजधानी को लेकर किस प्रकार से प्रदेश के अंदर पिछले 30 वर्षों से अजीब खेल खेला जा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। लोगों को विश्वास नहीं है कि सरकार मूल निवास और भू कानून को लेकर साहसिक कदम उठा पाएगी। प्रदेश के मूल निवासी लंबे समय से प्रदेश में सशक्त भू-कानून और मूल निवास की मांग कर रहे है और सशक्त भू-कानून नहीं होने से उत्तराखंड की शांत वादियों में बाहरी लोगों ने अपना अड्डा जमा लिया है जो विभिन्न प्रकार के अपराधों को भी अंजाम देते हुवे आ रहे हैं। राज्य में पिछले कुछ समय में हुवे संगीन अपराधों में बाहरी लोगों की ही भागीदारी पाई गई है तो वहीं जमीनों को भी नियम विरुद्ध बेच कर प्रदेश का ढांचा ही बिगाड़ दिया गया है। सत्य तो लिया है कि राज्य बनने के बाद यहां की सरकारों और जनप्रतिनिधि प्रदेश के विकास को दरकिनार करते हुए अपना निजी स्वार्थ साधते रहे। सरकार की निर्णय लेने की अक्षमता के कारण
प्रदेश में ड्रग्स माफिया, भू-माफिया, खनन माफिया गोरखधंधे कर रहे हैं, इसलिए शुरुआत से ही यह जरूरत समझी जा रही थी कि उत्तराखंड में भी हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सशक्त भू-कानून लागू किया जाय। इसके अलावा प्रदेश में 1950 मूल निवासी लागू करने के साथ ही समय-समय पर मूल और स्थाई निवासी का सर्वेक्षण होना जरूरी है। उत्तराखंड राज्य को बचाने के लिए अब यह जरूरत बन गई है कि उत्तराखंड की जनता जल्द ही नहीं जागी तो भविष्य में प्रदेश दयनीय स्थिति में पहुंच सकता है। अब जन आंदोलन का समय है, जिसकी हुंकार लगा दी गई है।

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